1997 की बात है। मैं चित्रकूट जि़ले में सुपरवाइज़र की तरह काम करती थी। मेरा इलाका मरकुण्डी क्षेत्र था जहां मैं गांवों में जाकर शिक्षा की जागरूकता फैलाती थी। हर दिन, सुबह 11 बजे और शाम 5 बजे मानिकपुर से मरकुण्डी के बीच एक बस जाती थी।
एक खास समस्या थी जिसका सामना हम मरकुण्डी में करते थे। उत्तर प्रदेश कानून की अवमानना करने के लिए जाना जाता था। ये उसका बिलकुल उचित उदाहरण था। हर रोज़ बस को मरकुण्डी थाने पर रोका जाता था जहां पुलिस ने रोकें लगा रखी थीं। वे बस को बिना किसी बात के घंटों रोके रखते थे। इससे उन्हें कोई मतलब नहीं था कि अगर किसी सवारी को ज़रूरी काम हो या बस में कोई मरीज़ हो। कोई विरोध नहीं कर सकता था।
एक दिन मैं बस का इंतज़ार कर रही थी, जब एक लम्बा चैड़ा आदमी मेरे पास आया। उसका चेहरा कपड़े से ढका था। हम बात करने लगे। वो मेरा काम जानता था और उसने मेरी हिम्मत की दाद दी। मेरा काम मुझे दूर-दूर के गांवों तक ले जाता था जहां डकैतों का राज था। जब मैंने पूछा वो कौन है तो उसने कहा, ‘‘मैं पुलिस का बाप हूं’’। मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। जल्द ही बस आ गई। बस में एक औरत की तबियत खराब हो गई और उसे मानिकपुर अस्पताल ले जाने की ज़रूरत पड़ी।
जैसा कि होता ही था बस को मरकुण्डी पुलिस थाने पर रोका गया। हर बार की तरह बस को रोक कर पुलिसवाले रोज़मर्रा के कामों पर चले गए – खाना पकाना, नहाना, तैयार होना। इतनी देर में औरत चिल्लाने लगी। मैं ड्राइवर से विनती करने लगी कि पुलिस से बात करे कि हमें जाने दंे।
उस आदमी ने जिसने चेहरा कपड़े से ढका था ड्राइवर को बोला कि पुलिस को बुलाए। ड्राइवर जवाब लेकर वापस आया, ‘कौन हमें बुला रहा है?’ ड्राइवर को इतने ही सख्त सन्देश के साथ वापस भेज दिया गया, ‘तुम्हारा बाप बुला रहा है। अगर बस को फिर रोका तो आग लगा दूंगा।’
अब हमें समझ में आया। ये आदमी कोई और नहीं खतरनाक डकैत ददुआ था। जिसका डर तीन दशकों तक पाठा के घाटों से चम्बल तक फैला था। ददुआ चिल्ला रहा था और ड्राइवर ने बिना पुलिस का इंतज़ार किए बस आगे बढ़ा दी। उस दिन के बाद से कोई भी बस मरकुण्डी थाने पर रोकी नहीं गई।
ददुआ या कहें शिवकुमार पटेल का जन्म गरीब परिवार में हुआ। कई दशक पहले दबंगो ने उसके पिता को धमकाया और उनकी ज़मीन छीन ली। डरकर शिवकुमार घर से भाग गया और चित्रकूट में अराजकता और डकैती का चेहरा बन गया।
ऐसा कहा जाता है कि ददुआ स्पेशल टास्क फोर्से से 2007 में एक मुठभेड़ में मारा गया। मगर उसकी कहानियां आज भी सुनाई जाती हैं। उसके मरने के समय उस पर 150 से अधिक मामले दर्ज थे। मगर ददुआ चित्रकूट के गरीबों का मसीहा और राज्य का दुश्मन था। उसने कई गरीब परिवारों की लड़कियों की शादियां करवाई थीं, ताकतवर लोगों को पीटा था और पुलिस की नाक में दम किया था।
आज उसकी और पत्नी केतकी की मूर्ति को फतेहपुर जि़ले के नरसिंघपुर कबराहा गांव में स्थापित किया गया है। उसका बेटा वीर सिंह और भाई बाल कुमार पटेल सत्ताधारी समाजवादी दल में महत्त्वपूर्ण पदों पर है।
हम अब ये अचरज करते हैं कि क्या वो सिर्फ एक आदमी था जिसने कानून अपने हाथ में लिया या मसीहा था जिसकी जगह मंदिर में है?
मीरा जाटव, खबर लहरिया