आज देश में राज्य और केंद्रीय स्तर पर लगभग 40 श्रम कानून हैं जो मज़दूरी के अलग–अलग पहलुओं को विनियमित करते हैं। ये कानून कई चीजें तय करते हैं जैसे कारखानों में होने वाले विवादों के समाधान, कारखानों में काम करने की स्थिति, मजदूरी का पैसा और बोनस भुगतान। पिछले कुछ सालों में विशेषज्ञों द्वारा इन नियमों और कानूनों को आसानी से अपनाने के लिए इसमें सुधार की सिफारिश की गई है।
इन सिफारिशों के आधार पर लोकसभा में अगस्त 2017 में एक विधेयक पेश किया गया। इसमें न्यूनतम मजदूरी, बोनस एवं मजदूरी का भुगतान और महिलाओं एवं पुरुषों के बीच असमान मजदूरी जैसे अलग-अलग पहलुओं को शामिल किया गया। यह दस्तावेज़ या संहिता फिलहाल श्रम से जुड़ी एक ख़ास कमिटी को भेज दी गई है। इस संदर्भ में यह समझना ज़रूरी है कि श्रम से जुड़ी इस संहिता के मुख्य बिंदु क्या हैं।
न्यूनतम मजदूरी किन लोगों को मिलेगी?
संहिता के अनुसार सभी प्रकार के मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिलनी चाहिए, चाहे वे संगठित क्षेत्र के हों, या असंगठित क्षेत्र के। विशेषज्ञों का मानना है कि असंगठित क्षेत्र में 90% से अधिक लोगों के पास लिखित दस्तावेज़ और अनुबंध नहीं होते हैं। इस वजह से वे श्रम से जुड़े कानूनों के दायरे से बाहर रह जाते हैं।
न्यूनतम मजदूरी कैसे तय की जाएगी?
संहिता यह कहती है कि केंद्र सरकार देश के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करेगी। इसके साथ ही वह विभिन्न राज्यों या भौगोलिक क्षेत्रों के लिए भिन्न-भिन्न न्यूनतम मजदूरी भी तय करेगी। लेकिन केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं होनी चाहिए। अगर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी, राष्ट्रीय दर से अधिक है तो वे न्यूनतम मजदूरी को कम नहीं करेंगी।
संहिता में नियोक्ताओं से यह अपेक्षा की गई है कि वे अपने कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी देंगे। ये मजदूरी केंद्र या राज्य सरकार द्वारा तय की जाएगी। केंद्र या राज्य सरकारें प्रत्येक पांच वर्षों में न्यूनतम मजदूरी की समीक्षा करेंगी या उसमें संशोधन करेंगी।केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा किसी कार्यदिवस के अधिकतम घंटों को निर्धारित किया जाएगा।
अगर कर्मचारी अधिकतम घंटों से अधिक कार्य करेंगे तो उन्हें ओवरटाइम दिया जाएगा। ओवरटाइम की राशि कर्मचारी के सामान्य वेतन से कम से कम दोगुनी होगी।
वेतन का भुगतान कैसे किया जाएगा?नियोक्ता द्वारा मजदूरी का भुगतान सिक्कों, करेंसी नोटों, चेक या डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया जाएगा। मजदूरी की अवधि दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक, किसी भी आधार पर नियोक्ता द्वारा निर्धारित की जा सकती है। संहिता के अंतर्गत एक कर्मचारी की मजदूरी कुछ निश्चित आधारों पर ही काटी जा सकती है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं- जुर्माना, ड्यूटी से अनुपस्थित रहना, नियोक्ता द्वारा आवास उपलब्ध कराना या कर्मचारी को दिए गए एडवांस की वसूली आदि।
उपर्युक्त कटौतियां कर्मचारी की कुल मजदूरी के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
मजदूरी संहिता, 2017 में राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी के प्रावधान पर मुख्य रूप से बल दिया गया है। इसके बाद कोई भी राज्य सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी तय नहीं कर सकेगी। न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 और मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 के प्रावधानों के दायरे में अधिकांश कर्मचारी नहीं आते थे। नई मजदूरी संहिता के तहत सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित की जाएगी।
लेख साभार: विनायक कृष्णन, पी आर एस लेजिस्लेटिव रिसर्च