चित्रकूट जिला, महोबा जिला। चित्रकूट जिले के पहाड़ी ब्लाक, सालिक्पुर गांव की निवासी रमती एक अन्त्योदय राशन कार्ड धारक है। रमती एक भूमिहीन परिवार से है, जिसमें आठ लोग है। पिछले छह महीने से इनको राशन नहीं मिला है। 1 अप्रैल को रमती कर्वी तहसील पहुंचीं। उन्हें अखिलेश यादव की सरकार की तरफ से एक किट दिया गया यानि खाद्य पैकेट, जिसमें पांच किलो दाल, दस किलो आटा, पांच किलो सरसों का तेल, एक किलो देशी घी, एक किलो दूध पाउडर और 25 किलो आलू था। रमती कहती है कि इस पैकेट से उनके एक महीने का गुजारा हो जाएगा।
वहीं 31 मार्च को महोबा जिले के कबरई ब्लाॅक की 70 साल की छंगु को भी अखिलेश यादव का खाद्य पैकेट मिला। वह अपने परिवार की अकेली सदस्य है। उनकी आंखें भी खराब है। लाल राशन कार्ड होने के बावजूद छंगु ने बहुत सालो से ना तो घी खाया है, ना दूध पिया है।
31 मार्च को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुंदेलखंड का फिर दौरा किया। इस बार इन्होंने महोबा और चित्रकूट जिले का चक्कर लगाया। जैसे-जैसे 2017 के चुनाव नजदीक आ रहे है, वैसे-वैसे मुख्यमंत्री के दौरे बढ़ रहे है। महोबा में अखिलेश ने 19 योजनाओं और चित्रकूट में दो घंटो के अन्दर 16 योजनाओ की घोषणा की। कुल मिलाकर 199 करोड़ के प्रोजेक्ट की घोषणा की गयी है।
सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड के इन जिलों को सरकार जनवरी से अलग-अलग रूप में राहत का दे रही है। खाद्य पैकेट सरकार की सबसे नयी राहत योजना है। अखिलेश यादव ने महोबा में 1500 और चित्रकूट में 1047 अन्त्योदय परिवारों को खाद्य किट बांटे। कबरई ब्लाॅक के लगभग 6654 अन्त्योदय परिवारों को किट बांटे जा रहे है और पुरे चित्रकूट जिले में 21,074 के लिए सामान आ चुका है।
खाद्य पैकेट के वितरण में अभी से ही कमियां नजर आने लगी हैं। 3 अप्रैल तक किट बांटनी थीं, कर्वी ब्लाॅक में अभी तक पूरी नहीं हुई है। किट में पांच किलो चना दाल दिया गया है जो सब नहीं खाते है। बदेहार गांव की कलावती का कहना है कि छह महीनो से उनके परिवार में दाल नहीं बनी है। अब पैकेट में चने की दाल मिली है जो उनके बच्चे खा नहीं पा रहे है। आगे कहती है कि सरकार को अरहर की दाल देनी चाहिए।
कबरई ब्लाॅक की उर्मिला एक भूमिहीन किसान है। उनका मकान कच्चा है। वह मजदूरी करती है और उनके पति कबरई के पत्थर मंडी में काम करते है। उनके चार बच्चे है। उर्मिला को खुशी इस बात की है कि उनके बच्चों को घी खाने को मिलेगा, लेकिन दूसरी तरफ उन्हें चिंता हो रही है कि दस किलो आटा और पांच किलो दाल से वह अपना घर महीने के कितने दिन चला पायेगी। बरिपुरा गांव की सुमन भी यही कहती है कि दस लोगों का परिवार एक खाद्य पैकेट से कितने दिन काम चला सकता है।
तीन सालों से बुंदेलखंड में सुखा पड़ा है। इस क्षेत्र की स्थिति इतनी बुरी हो चुकी है कि ऐसा लगता है कि अकाल अभी दूर नहीं। कहीं लोगों ने दाल खाना बंद कर दिया है तो कहीं बच्चो ने दूध पीना। राशन कार्ड होते हुए भी परिवार राशन के बिना भूखे फिर रहे हैं। खाद्य सुरक्षा योजना लागू होने के बावजूद हजारों परिवार सुरक्षा कवच के बाहर है।
अखिलेश सरकार की इस नयी योजना से यह साफ-साफ दिख रहा है की राशन वितरण में कितनी कमियां है। सूखे की स्थिति को मिटाने के लिए सरकार कब तक खाद्य पैकेट देती रहेगी लोगों को? 2017 के चुनाव के बाद सूखे-ग्रस्त बुंदेलखंड का क्या होगा?
रिपोर्टर: मीरा जाटव, सुनीता प्रजापति