लखनऊ। आपने हज़ारों विकलांगों को भीख मांगते देखा होगा, कुछ पढ़-लिख के अच्छे पदों पर काम भी कर रहे हैं। लेकिन बिना पढ़े-लिखे होने के बावजूद सड़क के किनारे बैठा रमेश शर्मा भीख नहीं मांगता बल्कि अपना रोज़गार चला रहा है। हज़रत गंज में फुटपाथ पर ये रबर और क्लचर बेचता है। अट्ठाइस वर्ष के रमेश के दोनों पांव पोलियो की वजह से सूख गए हंै, वह चल नहीं पाता है लेकिन अपने पैरांे पर खड़ा है।
रमेश बताता है ‘हम मुख्य रुप से कानपुर की पुरानी चुंगी के रहने वाले थे। हम चार भाई बहन हैं। पिताजी रिक्शा चलाते थे। बचपन में ही हमारा पूरा परिवार लखनऊ आ गया। कुछ दिनों बाद पिताजी की मौत हो गई। सारे भाई बहन छोटे थे। मेरे ही मुहल्ले के एक लड़के ने मुझे अमिनाबाद चलने को कहा। उसी ने कुछ माल(सामान) भी लाकर दिया और मैं उसे बेचने लगा। चार साल वहीं रहा फिर उसी ने मुझे हज़रत गंज में लाकर छोड़ दिया तब से यहीं पर हंू। बड़ा भाई मिस्त्री का काम करता है। दोनों बहनों की शादी हमने अपनी कमाई से की है और घर भी चला रहे हंै।’ हर रोज़ आमदनी कितनी हो जाती है? पूछने पर रमेश ने कहा कि ये तो बिक्री के हिसाब से है सौ रुपए से तीन सौ रुपए रोज़ का कमा लेता हंू।