खबर लहरिया सबकी बातें अधूरी जनगणना – जाति से परहेज़ और पलायन का ज़िक्र नहीं

अधूरी जनगणना – जाति से परहेज़ और पलायन का ज़िक्र नहीं

देश में हाल ही में आर्थिक, सामाजिक और जाति आधारित जनगणना रिपोर्ट जारी हुई। रिपोर्ट के आंकड़ों से देश की जो तस्वीर बनती है वह बहुत निराशाजनक है।

रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों के तीन चैथाई परिवारों की आमदनी पांच हजार रुपए महीने से ज्यादा नहीं है। गांवों में रहने वाले इक्यावन प्रतिशत परिवार अस्थायी मजदूरी के सहारे जीते हैं। करीब तीस प्रतिशत परिवार भूमिहीन मजदूर हैं। दूसरी तरफ विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था सात साल में दोगुनी हो गई है। जनगणना रिपोर्ट के आंकड़े इस दोगुनी हुई अर्थव्यवस्था की पोल खोलते हैं।

रिपोर्ट का नाम भले ही सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित रिपोर्ट हो लेकिन इससे जाति आधारित आंकड़े हटा दिए गए हैं। क्या भाजपा सरकार नहीं चाहती कि जाति के आधार पर लोगों के रहन सहन का स्तर सामने आए? इसे समझने के लिए इसके राजनीतिक असर को समझना पड़ेगा।

बिहार में इसी साल चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में भी दो साल में चुनाव होगे। ज़्ामीनी सच्चाई सबको पता है कि दलित, आदिवासी, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग ही सबसे ज़्यादा गरीबी में जी रहा है। सरकारी सुविधाएं सबसे कम इन्हें ही मिलती हैं। अगर आंकड़े सामने आते तो इन जातियों को अलग से सुविधाएं देने के लिए कुछ नई घोषणाएं करनी पड़तीं। ऊंची समझी जाने वाली जातियों के वोटों पर इसका असर पड़ता।

तीसरी बात इस रिपोर्ट में गांवों से काम के लिए पलायन करने वाले लोगों का जिक्र नहीं है। गांवों में ज़्यादातर गरीब परिवार साल में एक बार पलायन करते हैं। तीन-चार महीनों तक काम करके लौट आते हैं। इनका रिपोर्ट में कोई जिक्र नहीं है। यह ज्यादातर दलित-महादलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा वर्ग के ही परिवार होते हैं।