बुन्देलखण्ड के किसान हर मौसम में कोनऊ न कोनऊ बहाने से मारो जात हे। पानी न बरसे से सूखा , ओलावृष्टि या पाला से परे के कारन। सरकार की सुविधा ओर नियम कागज में चढ़ के रेह जात हे। ईखे बाद भी जेसे-तेसे किसान आपन मन बहला लेत हे। किसान आदमी खा सरकारी सुविधा को बोहतई कम लाभ मिलत हे जा फिर बिल्कुल नई मिलत हे। हम बात करत हे यूरिया खाद की महोबा जिला के पूरे गांवन के किसान ई समय खाद खा लेके बोहतई परेशान हे। खाद न मिले के कारन किसान खा बाहर ब्लाक से ंपांच सौ की एक बोरी खरीदने परत हे। पे कछू आदमियन खा अवश्यकता से ज्यादा भी मिल जात हे।
सवाल जा उठत हे कि जभे सहकारी समिति में खाद नइयां तो बाहर कि दुकानन मे किते से खाद आउत हे। जभे समय से सरकारी सुविधा को लाभ नई मिलने हे तो समिति काय बनाई जात हे। जभे बाहर से खरीदने हें। अगर न खरीदहें तो जोर्न फसल बोई हे ऊ भी बरबाद होत हे।
ऊसे तो भारत खा कृषि प्रधान देश कहो जात हे, पे का ऐसी स्थिति में किसान अपने देश के खाये के लाने गल्ला उगा सकत हे। का कोनऊ भी किसान खेती करें खा तैयार हो हे। बात जा हे आज कोे महोबा जिला के किसान खेती को काम छोड़ के पलायन खे लाने मजबूर हे। काय से हमेशा किसान दैविय आपदा से मारो जात हे। एक तो किसान की कहूं सुनवाई नई होत हे, ओर अगर ज्यादा धरना, अनसन जा फिर बोहतई हंगामा रोड जाम करत हे तो सरकारी कर्मचारी झूठो अश्वासन दे देत ओर ऊखो लाभ भी गिने चुने किसान खा मिलत हे। सोचे वाली बात तो हे कि जभे सरकार सरकारी सुविधा किसानन खा भेजत हे तो काय नई मिलत हे। आखिर का कारन हे कि किसान दैविय आपदा के साथे कमचारियन की भी मार मारो जात हे। जा बात बोहतई सोचनीय हे तभई किसानन की समस्या दूर हो सकत हे।
केसे हो हे समस्या दूर?
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