अब ई बेमौसम बारिस ओर ओलावृष्टि ने किसान के ऊपर कहर बरसा दओ हे। चारऊ केती किसान हत्या तो अब आम बात हो गई हे। जिते देखो ओत किसान की मोत ही सुनात हे।
बुन्देलखण्ड को किसान हर समय कोनऊ न कोनऊ समस्या को मार मारो जात हे। एते तक की ऊखे अपने जान से भी हाथ धोने परत हे। आखिर जा किखो दोष आय। का जा समस्या खत्म हो जेहे।
सवाल जा उठत हे कि जभे नेता कोनऊ भी वादा करत हे तो पूरा करें खा चाही। किसान बड़े-बड़े नेतन के बातन में आके आपन जान गवा देत हे। जभे किसान की सदमा से मोत हो जात हे। तभे मुआवजा दओ जात हे। पे का ऊ मुआवजा से किसान लौट आहे जा फिर परिवार कित्ते दिन घर को खर्च चला पेहे। जभे सरकार खा होंय वाली दैवीय आपदा के बारे मे पता होत हे तो पेहले से ऊखे पेहले से सुविधा करे खा चाही? अगर एसई हाल रेहे तो को कोनऊ किसान खेती करे खा बच पेह। ऊसई तो भारत खा कृषि प्रधान देश कहो जात हे। पे हमेशा दैवीय आपदा को मार मारो जात हे। किसान की कहूं सुनवाई नई होत हे। अगर किसान अनशन, धरना जा फिर रोड जाम करत हे तो अधिकारी झूठो अश्वासन के अलावा कछू नई मिलत हे।अगर लाभ भी मिलत हे तो गिने चुने किसानन खा। महोबा जिला में आज भी एसे केऊ गांव हे जोन गांव में लेखपाल न रूपइया लेके चेक दई हे। आखिर का कारन हे कि किसान दैवीय आपदा के साथे आधिकरियन की मार मरो जात हे।
केसे रूकहे किसान आत्महत्या
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