दूसरे राज्यों की तुलना में, बिहार में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य में 38 पोषण पुनर्वास केंद्र हैं। इसके बावजूद राज्य में पांच वर्ष से कम उम्र के 50 लाख कुपोषित बच्चे हैं, जिनमें केवल 0.3 फीसदी बच्चों का इलाज मुमकिन है। इसे ऐसे समझें कि 340 कुपोषित बच्चों में से सिर्फ 1 का ही इलाज किया जा सकता है और यह स्तिथि भयंकर है!
एक आरटीआई याचिका से मिली जानकारी के अनुसार, बिहार के हर जिले के लिए एक पोषण पुनर्वास केंद्र है। जिनमें बिस्तरों की संख्या 10 से लेकर 20 के बीच तक है और यहाँ प्रत्येक कुपोषित बच्चे को औसतन 20 दिनों में इलाज की जरूरत पड़ती है। यानी बिहार के सभी जिलों के पोषण पुनर्वास केंद्र मिलकर 13,870 कुपोषित बच्चों यानी 0.3 फीसदी बच्चों का इलाज करते हैं।
कुपोषण के शिकार मुख्य रुप से वे बच्चे होते हैं, जिन्हें पर्याप्त आहार या पोषण युक्त आहार नहीं मिलता है। आमतौर पर कुपोषण इन में से एक या अधिक प्रकार के होते हैं:-उम्र के हिसाब से लंबाई कम हो जाना, उम्र के हिसाब से कम वजन का होना, उम्र के हिसाब से कम कद और कम वजन होना।
बिहार में 100,000 से ज्यादा गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे हैं, जिनका विकास दर सबसे कम है और परिणाम स्वरुप इन बच्चों में मौत का खतरा भी सबसे कहीं ज्यादा है। इन कुपोषित बच्चों में 500 से अधिक बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र पर इलाज का मौका नहीं मिल पाता। झारखंड और मध्य प्रदेश के साथ-साथ बिहार में भारत के कुपोषित बच्चों का अनुपात सबसे ज्यादा है। 2015 में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक, एक से पांच वर्ष की आयु के बीच कुपोषित बच्चों की संख्या के मामले में भारत, एशिया में तीसरे और दुनिया भर में 24वें स्थान पर है।
साभार: इंडिया स्पेंड