उत्तर प्रदेश में पिछत्तर में से बाइस जिलों में केंद्र सरकार की ‘सबला’ योजना 2011 से लागू है। इस योजना के तहत किशोरियों के शारीरिक और मानिसक विकास के लिए काम किया जाना है। पर कई जगह इस योजना के बारे में लोगों और यहां तक कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ज़्यादा जानकारी नहीं है।
जिला बांदा, ब्लाक बबेरू और जिला चित्रकूट, ब्लाक रामनगर की किशोरियों ने बताया कि आंगनवाड़ी में उन्हें सिर्फ पंजीरी मिलती है। माहवारी के समय उठने वाली समस्याओं के बारे में केंद्र पर कोई जानकारी नहीं मिलती है।
जिला महोबा। महोबा में ‘सबला’ योजना नवम्बर 2010 से चल रही है। हर महीने लड़कियों का वज़न करने का नियम तो है पर आष्चर्य की बात यह है कि 12 नवम्बर 2014 को जिला कार्यक्रम कार्यालय में चार साल बाद पहुंचीं वज़न नापने की मषीन नई की नई आई हुईं थीं। जब ब्लाक चरखारी की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से पूछा गया कि अब तक वे कैसे किशोरियों का वज़न कर रही थीं, तो उन्होंने कहा कि वज़न तो अंदाज़ से बताया जा सकता है। जिला कार्यक्रम विभाग से पता चला कि जल्द ही मशीनों का वितरण होगा।
एक बार सबला योजना के तहत गांव की तीन लड़कियां सिलाई कढ़ाई का प्रषिक्षण लेने गई थीं। प्रषिक्षण तो पूरा हो गया लेकिन आगे काम कैसे बढ़ाया जाए इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
– बांदा के सांतर गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरोज
केन्द्र सरकार ने 2010 में राजीव गांधी किषोरी सशक्तीकरण परियोजना (सबला) की शुरुआत की। इस योजना के तहत ग्यारह से अट्ठारह साल की किषोरियों के स्वास्थ्य, रोज़गार और अधिकारों की पहल की जाती है। यह परियोजना आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और ए.एन.एम. की देख रेख में चलाई जाती है। पोशाहार देने के अलावा माहवारी और प्रजनन के बारे में जानकारी, खून की जांच, आयरन की गोलियां देना और शिक्षा और जागरुकता भी इस योजना में शामिल हैं।