कुपोषण के दूर करे के लेल सरकार केतना विभाग से लोग सब के सुविधा देई छथिन। ऐकरा मुक्त करे के लेल केतना बेर एन.जी.ओ. भी काम करई छई। गांव के टोला मुहल्ला से लेके जिला स्तर तक इ विभाग से जुरल लोग छथिन। लेकिन सही जांच अउर सही व्यवस्था न मिल पवई छई।
गांव में कुपोषण मिटावे के लेल आंगनवाड़ी केन्द्र पर पोषाहर, टीकाकरण होई छई। तईयो बच्चा वंचित रह जाई छई। पोषाहार कोई बच्चा के मिलल त कोई बच्चा के नाम न रहई छई। अगर ज्यादा कुपोषित के जिला में पोषण पुणर्वास केन्द्र में भेजई छथिन। लेकिन उहो भी बच्चा भी रखे के संख्या निर्धारित हई। कभी अधिक बच्चा चल जाई छई त रखे के भी साधन न रहई छई। बच्चा कम भी रहई छई त जे सुविधा देख रेख के अउर खान-पान के मिलई छई उ न के बराबर मिलई छई। जबकि सरकार एगो पुणर्वास केन्द्र पर पौष्टिक आहार के लेल तीन लाख रूपईया खर्च करईत रहथिन। अब नवम्बर 2014 से वजट कम हो गेलई। तईयो एक लाख छब्बीस हजार रूपईया अबई छई। हर आंगनवाड़ी पर लगभग बीस हजार रूपईया अबई छई। अगर सरकार सुविधा देवे के लेल नियम लगबई छथिन। लेकिन सुविधा मिलवे न करतई त की कुपोषण दूर हो जतई? अगर इहे व्यवस्था रहतई त सरकार के नियम लगावे से कोन फायदा हई।
की कुपोषण दूर होतई?
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