बच्चा के शिक्षा से जोरे के हर भरसक प्रयास कयल जा रहल हई। पर ई प्रयास केतना हद तक कारगर हई, एकर अंदाजा एई से लगायल जा सकई छई कि मई महिना बितला के बाद भी बच्चा के किताब न मिलल हई।
बच्चा के शिक्षा पर सरकार अतेक खर्च कर रहल छथिन। जइसे कि पोषाक राशि, मध्यान भोजन, छात्रवृति इत्यादि। लेकिन अतेक खर्च कयला के कोन फायदा जब समय पर बच्चा के किताब ही न मिले। जब समय से बच्चा सबके किताब न मिलतई त कइसे साल भरके पढाई पूरा करतई? ‘‘समझे सीखें’’ कार्यक्रम के तहद ऐई साल जून से नया सत्र के शुरूआत करेके हई। जबकि हर साल अप्रैल से ही शुरूआत हो जाईत रहलईय। इ कोई नया समस्या न हई। विद्यालय में अक्सर कोई न कोई वर्ग के बच्चा किताब से बंचित रह जाई छथिन। 2012 में आठवां के बच्चा के भी समय के बहुत बाद किताब मिललई। एई से उनकर पढ़ाई हि न बाधित होई छई साथ में उनकर मनोबल भी टुटई छई। अईसन में हम केकरा दोषी ठहरा सकई छी? हर कोई एक दुसरा पर आरोप लगा के अपन पल्ला झार लेई छथिन।
दोसर समस्या इ भी देखे के मिलई छई कि कोई वर्ग के लेल किताब न हई अउर कोई वर्ग के किताब बि.आर.सी. में सड़ईत रहई छई। बिद्यालय में शिक्षक के कमी, भी एगो बड़ा समस्या हई। अब अगर ओहु में किताब भी न रहतई त कि होतई? सरकार ऐई पर तनको ध्यान देइतथिन, त शायद इ समस्या देखे के न मिलतियई।