आज हम खुद के आजाद होने का दावा बड़े ठो़क बजाकर करते हैं और इसे सिद्ध करने के लिए कुछ न कुछ बहादुरी भरा काम करते भी रहते हैं। इन ही कामों में से एक काम आजकल सेक्स करने की आजादी बन गया है।
यहां पर हम सेक्स करने की व्यक्तिगत आजादी के खिलाफ नहीं हैं। पर सेक्स करना ही आजादी की पूरी परिभाषा भी नहीं है। आजादी से अर्थ किसी बात को बिना तर्क के स्वीकार करना है, जिसमें इंसान मन, तन और धन से पूरी तरह आजाद हो।
मन की आजादी का अर्थ मन मुताबित रहना है, जबकि तन की आजादी से अर्थ अपने शरीर पर पहला हक आपका खुद का होना है। धन की आजादी आर्थिक आजादी हैं, जो आजाद होने की सबसे अहम शर्त हैं। पर देखने-सुनने में सिर्फ एक ही आजादी की बात होती है, वो तन की आजादी, जिसमें किसी इंसान को किसी से भी सेक्स करने की आजादी मिली हैं और खुद को आजाद बताने वाले लोग इस आजादी को प्राप्त करके ही खुद को आजाद खयालात के बताते हैं।
पर ये सिर्फ आजादी का एक भाग हैं और आजादी की पूरी लड़ाई की एक छोटी जंग। इस ही मुद्दे पर युवा पीढ़ी की लेखिका अनुजा चौहान ने आज तक के साहित्य महाकुंभ में अंग्रेज़ी लेखकों के एक सत्र में कहा, “सेक्स कोई क्रांति नहीं है। यदि आप एक ही समय में कई लोगों के साथ इन्वॉल्व हैं तो यह प्रगतिशील होना नहीं है। नारीवादी होना नहीं है। हम बाजार द्वारा तय की गई बातों पर अधिक विश्वास करते हैं। हमारे समाज में सेक्स से भी जरूरी चीजें हैं जैसे कि कास्ट, डेमोक्रेसी और एजुकेशन। हमें उन पर बात करने की अधिक जरूरत है। हम सेक्स में अपनी आजादी ढूंढने लगें तो यह गड़बड़ है।”
तो आप भी अपनी पूरी आजादी को ढूंढे नाकि उसके एक भाग को पाकर खुश हो जाएं।