आदमी किसान को नाम तो बोहतई हे कि !! सीमा पे जवान, ओर खेत पे किसान,, बुन्देलखण्ड किसान हर साल कोनऊ न कोनऊ दैविय आपदा के तहत मार मारे जात हे। सुखा पाला अतिओला वृष्टि जेसी समस्या किसान खा झगझोर के धर दओ हे। किसानन ने अपने खेतन में उड़द मूंग की फसल बो दई हती। जोन बारिस न होंय के कारन सब सूख गई हे।
महोबा जिला में साठ प्रतिशत आदमी खेती के सहारे हते जोन अब आपन घर परिवार छोड़के पलायन करें खा मजबूर हो गये हे। ऊखो सबसे बड़ो कारन हे कि दैविय आपदा के साथे सरकारी कर्मचारियन की मार। जी हां सरकारी कर्मचारियन की मार काय से आज भी महोबा जिला के लगभग पचास प्रतिशत किसान अतिओलावृष्टि के मुआवजा के लाने भटकत हे।
राजस्व विभाग में जात हे तो लेखपाल खाता में भेजें की बात कहत हे ओर बैंक जात हे तो रूपइया न आयें की बात कहत हे।
ऐसी स्थिति सुनके एसो लगत हे कि रूपइया गओ तो किते गओ? सोचे वाली बात तो जा हे कि सरकार गरीबन खा लाभ भेजत हे जा फिर अपने कर्मचारियन खा? लेखपाल से लेके जिला अधिकारी तक मिली भगत हे। किसान आठ महिना से चक्कर काटत हे। बजट खत्म हो गओ किसानन खा मुआवजा नई मिलो। सरकारी कर्मचारी भी जानत हे कि गरीब किसान कभे तक चक्कर लगाहें। आखिर ई समस्या से कभे तक किसान जूझहे।
अब एक ओर सबसे बड़ी बात जा हे कि किसानन ने जेसे तेसे अपने खेत की जुताई बुआई तो करा लई हती पे अब ऊ भी सूख गई हे। गांव के किसान कहत हे कि चुनाव को समय हे नेतन खे अपने वोटन की परी हे, खेती केती कोनऊ को ध्यान नई जात हे। सवाल जा उठत हे कि का एसी स्थिति में नेता जनता पे आपन विश्वसास बना पेहे। का जे आयें वाले चुनाव शान्ति पूर्वक हो पेहे।
किसानन पे फिर परी मार
पिछला लेख