संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में किराये की कोख रखने का तीन हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का व्यापार चलता है।
लेकिन, पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने किराये के कोख(सेरोगेसी)विधेयक को मंज़ूरी देते हुए, इस धंधे पर रोक लगा दी। अब व्यापारिक सेरेगेसी नहीं लेकिन परोपकारी सेरोगेसी को कानूनन मंजूरी मिल जाएगी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के मुताबिक इस विधेयक के पास होने से महिलाओं को सुरक्षा मिलेगी।
आने वाले दस महीनों में देश के सभी सेरोगेसी अस्पतालों पर नियमनुसार रोक लगा दी जाएगी। दरअसल, सेरोगेसी के व्यापार को नियमित करने की सख्त ज़रुरत थी। लेकिन इस विधेयक से जरूरतमंद परिवारों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। अब सिर्फ शादी-शुदा दंपति, जिनके पांच साल बच्चा न हुआ हो, को ही अनुमति मिल सकती है जबकि एकल परिवार, समलैंगिक परिवार, बिना शादी किये साथ में रहने वाले दम्पति और प्रवासी भारतियों को किराये के कोख रखने की अनुमति नहीं मिलेगी। इसका मतलब यह हुआ की भारतीय संस्कृति में सिर्फ शादी-शुदा जोड़ें के लिए जगह है!
इस विधेयक में कई कमियां है जो महिला की सुरक्षा, परिवार के विकल्पों का ख्याल नहीं रखती हैं। किराये की कोख पर रोक लगाकर और सिर्फ परोपकारी सेरोगेसी को मंजूरी देकर, सरकार गरीब महिलाओं से आजीविका बनाने का एक रास्ता कम कर रही है।
इस विधेयक में यह भी बताया गया है कि किराये की कोख रखने के लिए सिर्फ परिवार के रिश्तेदार को ही अपनाया जायेगा यहाँ मुश्किल यह है कि हर परिवार में किराये की कोख, रिश्तेदार में मिलना मुश्किल है और बच्चे को जन्म देनी वाली महिला के साथ रिश्ता बनाये रखने पर भी डॉक्टरों का विचार विधेयक के खिलाफ है।
2016 सेरोगेसी विधेयक ने भारतीय परिवार की परिभाषा छोटी कर दी है, यहाँ यह समझ पाना मुश्किल हो गया है कि इस विधेयक से किसको फायदा होगा?
किराये की कोख का व्यापार अब बंद होगा लेकिन क्या यह सही है?
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