खबर लहरिया जवानी दीवानी कितना सही है कंडोम के विज्ञापनों पर रोक लगाना

कितना सही है कंडोम के विज्ञापनों पर रोक लगाना

साभार: विकिपीडिया

देश में पचास साल पहले सार्वजनिक वितरण कार्यक्रम में कंडोम का इस्तेमाल गर्भ निरोधक गोलियों की जगह करना बेहतर बताया गया था जिसकी वजह से 5 से 6 प्रतिशत तक गर्भ निरोधक दवाओं का सेवन कम करने में मदद मिली थी। आज भी सरकार टीवी चैनलों पर और रेडियो पर कंडोम के प्रयोग को सार्वजिनक रूप से बताने और इसका प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
इस बीच यह भी दिलचस्प है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में कंडोम के विज्ञापन प्रसारित करने पर टेलीविजन चैनलों को समयसारणी का पालन करने/प्रतिबंधित करने का आदेश दिया है।
12 दिसंबर को दी लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 2015 में भारत में 24 लाख से अधिक गर्भधारण अनपेक्षित थे यानी महिलाओं का गर्भवती होना पतिपत्नी के आपसी सहमती के विरुद्ध था। वहीँ, सरकारी सुविधाओं में मात्र 5 फीसदी गर्भपात हो रहे हैं, जिसका अर्थ है कि सरकार सुरक्षित और सस्ती गर्भपात के साथ महिलाओं की मदद नहीं कर रही है।
इसमें चिंताजनक बात यह है कि सरकार इन तथ्यों पर विचार करने के बजाय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने यह फैसला किया कि कंडोम के प्रचार से संबंधित कोई भी विज्ञापन सुबह 6 बजे से रात 10 तक प्रसारित नहीं किया जाएगा।
यह एक विडम्बना है कि कंडोम के बारे में शिक्षित करने वाले लोग ही अब समय के अनुसार टेलीविजन देखने की बात कर रहे हैं।
स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में आई और बी के मंत्रालय के अनुसार, “कुछ चैनल लगातार बारबार कंडोम के विज्ञापन दिखाते हैं, जो विशेष रूप से बच्चों के लिए अशोभनीय होते हैं।
इस आदेश की सबसे बुरी बात यह है कि इस तरह के आदेश एक महिला के नेतृत्व में मंत्रालय से आया है। इसके साथ ही उन्हें उम्मीद है कि वह बड़े पैमाने पर महिलाओं के प्रति संवेदनशील हैं।
शायद वह नहीं जानती हैं कि परिवार नियोजन के तरीकों के उपयोग के बारे में भारत अभी भी पिछड़ा हुआ है। यह वही स्तिथि की ओर जाता है जहां महिलाओं को अनावश्यक गर्भपात के लिए मजबूर किया जाता है।
एक अनुमान के अनुसार, भारत में हर साल 15.6 लाख गर्भपात होते हैं और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है। इनमें से अधिकतर गर्भपात बाजार में या निजी अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं की मदद से हो रहे हैं।
नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण इस तथ्य को रेखांकित करता है कि परिवार नियोजन का बोझ अभी भी महिलाओं पर है। संयुक्त रूप से केवल 53 प्रतिशत परिवार परिवार नियोजन में लगे हुए हैं।
सरकार का निर्णय, विज्ञापनों प्रतिबन्ध के रूप में सरकार की इस मुद्दे पर सीमित सोच को दर्शाता है, जो कंडोम का समर्थन नहीं करती है। जबकि इनपर प्रतिबंध लगाने के बजाय हमें एक ढांचे की आवश्यकता है जो प्रत्येक विज्ञापनदाता द्वारा प्रयोग में लाया जाये।