ए समय बनारस जिला के हर गावं में पशु बीमारी के षिकारी होत हयन। बारिष आउर उमस से गाय भैंस के उपर बहुत बुरा प्रभाव पड़त हव। पिए के पानी गन्दा आउर हरा चारा जैसे ज्वार, बाजरा के जहरीला हो जात हव। पषु के बीमारी के इलाज भी गांव में नाहीं हो पावत हव।
ए समय गाय भैंस खुरपका, मुंहपका, डायरिया, बुखार, गलाघोंटू जइसन बीमारी फइलत हव। सरकार त पशु चिकित्सालय बनवइले हव कि गावं वाले आके अपने पशु के इलाज करवइयन। लेकिन जब भी पशु चिकित्सालय में जा त डाक्टर ना रहीयन। अगर मिल भी जहियन त चार बार कहले के बाद भी पषु क देखे नाहीं अइतन। सरकार एतना योजना बनावला लेकिन उ सब खली कागज पर सजक के रह जात हव। जब गावं वालन के पशु मर जालन त ओकर आधा मुआवजा भी नाहीं मिल पावला।
जैसे की कमना गांव के एक गाय के गला घोंटू बीमारी रहल। डाक्टर के कई बार बुलावे पर भी डाक्टर नाहीं अइलन। ओन लोग सरकारी डाक्टर के भरोसे नाहीं रहलन जाके प्राइवेट डाक्टर से दवा ली अइलन। ए समय त सरकार पषु बचाव खातिर के टीका के शुरूआत कइले हव। मगर ना जाने कउन गावंमें टीका लगत हव। सरकार त सब चीज के आर्डर दे देई मगर कभी पलट के नाहीं देखत कि योजना कहाँ जात हव।
का होई गाय भैंस के
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