बुन्देलखण्ड में पानी की समस्या आम समस्या बन गई हे। ऊ पानी चाहे खेती खे लाने होय चाहे पिये खे लाने। हर मौसम में पानी खे हाहाकार मची रहत हे।
ऊसई तो महोबा जिला तालाबन खे लाने प्रसिद्ध हे। तालाबन को गढ़ मतलब पानी खा अम्बार, महोबा जिला में पहाड़ी इलाका ज्यादा होय खे कारन ई समय भी आदमी पिये के पानी खा तरसत हें। पिये को पानी भरें खे लाने एते के आदमी दो-दो सौ मीटर की सड़क पार करें खा मजबूर रहत हंे।
ईखा ताजा उदहरण पनवाड़ी ब्लाक के कोनिया गांव को मजरा छतेसर हे। जिते नौ सौ की आबादी में सिर्फ एक हैण्डपम्प लगो हे। ऊखो भी पानी इत्तो गन्दा निकरत हे जेसे कि कोनऊ ने पानी में मिट्टी मिला दई होय। जीखा पानी पी के आदमी बीमार हो जाय
अब सवाल उठत हे उत्तर प्रदेश सरकार की पेयजल व्यवस्था के ऊपर। ऊसई तो मानक के अनुसार डेढ़ सौ की आबादी में एक हैण्डपम्प होय खा चाही। फिर नौ सौ की आबादी वाले गांव छतेसर में एक हैण्डपम्प केसे हो सकत हे? का छतेसर गांव उत्तर प्रदेश सरकार के मानक से अलग हे? या फिर हर गांव खे लाने अलग-अलग नियम बनाये जात हें? जा नियम की जानकारी पेयजल व्यवस्था देखे वाले अधिकारियन खा पलट के देखे खा चाही। तभई महोबा में पिये खे पानी की समस्या दूर हो पाहे।
का दूर हो पाहे पानी की समस्या?
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