महोबा जिला में आज भी एसे तमाम स्कूल हें। जिते बाउन्ड्री बने की नोमत अभे तक नई आई आय। बाउन्ड्री न होय खे कारन न बच्चा खेल पाउत आय न पढ़ पाउत आय। अगर बिटिया पढ़े जात हें तो घर वाले स्कूल जाये से मना कर देत हें। कहत हें कि स्कूल चारो केती से खुलो हे।
एक केती सरकार बच्चन खा देश खा भविष्य मानत हे। दूसर केती बच्चन खे पढ़ाई की व्यवस्था खा लेके कोनऊ ध्यान नई देत आय। ईखा ताजा उदाहरण पनवाड़ी ब्लाक के फदना गांव को मजरा नौगांव में बनो दसन साल पुरानो प्राथमिक स्कूल हे। जीमें अभे तक बाउन्ड्री नई बनी आय। अगर सरकार ने स्कूलन में बाउन्ड्री बनवाये खा नियम लागू करो हे तो ऊखे बनवाये खे ध्यान काय नई देत आय? एक तो सरकार स्कूल एसी जगह में बनवाउत हे जिते अगाऊं-पछाऊं जंगल या तालाब हे। का सरकार के एते एसी जगह खा छोढ़ के स्कूल बनवाये खा ओर कहूं जमीन नई मिलत आय? गांवन में ऊसई आदमी बिटियन खा पढ़े नई जाय देत आय दूसर जब स्कूल की एसी हालत देखत हे तो नाम भी कटा देत हे।
जब आधिकारियन की तनक सी लापरवाही में बिटियन खा भविष्य अंधेरे में पर जात हे तो जल्दी से हर स्कूल में बाउन्ड्री बनवाये खे लाने सोचे खा चाही। अगर अधिकारियन से ईखी जवाब देही मांगे की बात आउत हे तो बजट न होय खा बहाना करके आपन पल्ला झाड़ देत हंे। अगर सरकार कोनऊ सुविधा लागू करत हे तो पेहले ओते काम पूरा न होय में आये वाली परेशानी के बारे में काय नई सोचत आय? का जभे बच्चन खे घर वाले स्कूल न भेजहें जा फिर कोनऊ बढ़ी घटना हो जेहे तभई सरकार स्कूल में बाउन्ड्री बनवाये खा काम पूरा कराहे?
का घटना खे बाद बनहें बाउन्ड्री
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