उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य खे लाने करोड़न रूपइया खर्च करके हजारन की गिनती में अस्पताल ओर जच्चा-बच्चा केन्द्र बनवायें हे। जीमें कछू अस्पताल ओर जच्चा बच्चा केन्द्रन खा डिलेवरी प्वाइंट घोषित करो हे। अगर ई डिलेवरी प्वाइंटन खे हकीकत देखी जाय तो अकेले कागजन तक ही सीमित हे।
हम बात करत हें महोबा जिला की जिते गांव ओर शहरी क्षेत्रन खा मिला के पन्द्रह डिलेवरी प्वाइंट घोषित करे गये हें। जीमे गिने चुने डिलेवरी प्वाइंट में ही डिलेवरी कराई जात हे। बाकी गांव खेे डिलेवरी प्वाइंट कबाड़ बन खे रह गये हं ईखा ताजा उदाहरण चरखारी ब्लाक के अकठौहा गांव में बनो जच्चा-बच्चा केन्द्र हे। जिते पांच साल में अकेले तीन डिलेवरी भई हें। ए.एन.एम. बताउत हें कि में नार्मल (आराम से होय वाली) डिलेवरी सेन्टर में कराउत हों। बाकी चरखारी रिफर कर देत हों।
अब सवाल जा उठत हे कि का पांच साल में तीनई डिलेवरी नार्मल भई हें। बाकी सब कमजोर डिलेवरी हती? जभे कि हकीकत में सच्चाई जा हे कि जोन डिलेवरी चरखारी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र नई पोंहच पाई हें ऊ डिलेवरी खा ए.एन.एम. सेन्टर में चढ़ाउत हे। एसई पनवाड़ी ब्लाक के दुलारा गांव को डिलेवरी प्वाइंट कभऊं नई खुलत आय। जभे कि ए.एन.एम. खा कहब हे कि डिलेवरी की व्यवस्था नई हे। अब सवाल उठत हे उत्तर प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था खें ऊपर कि अगर जच्चा बच्चा केन्द्रन खा डिलेवरी प्वाइंट घोषित करो हे तो ओते व्यवस्था कराये की जिम्मेदारी कीखी आय? अगर डिलेवरी प्वाइंट में डिलेवरी नई होत आय तो ऊखो का कारन हे? का ऊ डिलेवरी प्वाइन्टन खे व्यवस्था करे खे लाने सरकार केती से बजट नई आउत हे? अगर बजट नई आउत हे तो का करन हे ओर अगर आउत हे तो किते जात हे?