सरकार के लाखों रूपईया भवन बनावें के लेल अवई छई। लेकिन एकर उपयोगिता सही न हो पवई छई। अधिकारी भी एकर सरकारी समझ के टालईत रहई छथिन।
शिवहर के डायट भवन जर-जर परल हई। एकरा बनावे के लेल लाखों रूपईया अवई छई लेकिन रखल-रखल रूपईया लौट गेलई। लेकिन केकरो एतना चिंता न हई कि एई में जे छात्र पढ़ रहल हई, जे गार्ड रहई छई उ भगवाने भरोसे हई। अगर ओकर खपरा केकरो देह पर गिरतई या छप्पड़ टूट के गिरतई त एकर जिम्मेदार कोन होतई? अगर भवन बनावे के लेल जमीन न हई त खरीदल न कयला जा रहल हई। अगर दान के भरोसे में केकरो जान चल जतई त ओकर गुनहगार कोन होतई?
कोई भी पढ़े वाला या काम करे वाला घर छोड़ के इहां अवई छथिन। लेकिन एई ठंडा में लोग के कोन हालत होई छई। एकर अंदाजा कोई सड़क पर खड़ा होके भी लगा सकई छई। आधा छप्पड़ टूट के गिर गेल हई। लोग पन्नी टांग के रहई छथिन। लेकिन विभाग के एकर कोई चिंता न हई। आदमी के परेशानी के साथ उहां लाखों के समान भी बारिस में भींग के सड़ जतई।
विभाग एई के लेल जल्दीय कोई निर्णय लेथिन। कयला कि एई भवन में छेयालीस छात्र अउर ग्यारह शिक्षक रहई छथिन। हर पल कोई घटना के आशंका लगल रहई छई।
कयला देखई छी रास्ता?
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