प्रधानमंत्री द्वारा चलाओ गओ स्वाच्छ भारत अभियान बिल्कुल असफल नजर आउत हे। आज भी गांव की पचास प्रतिशत से ज्यादा आदमी ओरते बाहर खुले में शौच करे खा मजबूर हे। देखे ओर पढ़े के लाने तो दिवारन में एक से बढ़ के एक नारा पढ़े खा मिलत हे। पे अगर ईखी जमीन हकीकत जानी जाये तो कछू ओर हे।
हम बात करत हें महोबा जिला की जिते के गांवन मे एक साल से शौचालय के गड्ढा खुदे परे हे। आदमी शौचालय बनें को इन्तजार करत हे। प्रधान ओर अधिकारी बजट न होंय को बहाना कर टहलाउत हे।
ताजा उदाहरण-पनवाड़ी ब्लाक के बागौल गांव ओर चरखारी ब्लाक को कनेरा गांव के आदमी एक साल से मेहनत कर गड्ढा खुदे परे हे। लोगो के बच्चे गिर के घायल हो जात हे। सवाल जा उठत हे की का सरकार नाम के लाने योजना लागू करत हे जा हाकीकत मे आदमियन की समस्या दूर करे चाहत हे। अगर नाम क लाने करत हे तो जोन आदमी आसरा लगाये हे ऊखे मना कर देय, जा फिर बजट की ब्यवस्था करे खा चाही। शौचालय बने से गन्दगी बस न दूर होहे ओरतन के साथे हो रहे केस मे भी रोक लग सकत हे। काय से ज्यादातर ओरते की काम करके शाम खे शौचालय खा जात हे ओर जंगल में छिपे बेठे आदमियन को शिकार हो जात हे।
कभे हो हे पानी की समस्या दूर
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