10 मार्च तिब्बत के लिए एक खास दिन था। इस दिन सबसे पहले यहां के लोगों ने चीन के खिलाफ विरोध जताया। आज छप्पन साल के बाद भी अलग -अलग देशों में बसे तिब्बती लोगों और उनके समर्थकों ने इस दिन चीन के खिलाफ विरोध किया। उनकी एक ही मांग थी – तिब्बत की आज़्ाादी।
हिमालय की ऊंचाइयों में बसा तिब्बत एक आज़्ााद इलाका था। लेकिन चीन देश का मानना है कि यह हमेशा से चीन का हिस्सा रहा है। 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया। इसी साल अलग बौद्ध धर्म और अहिंसा में विश्वास रखने वाले तिब्बत ने दलाई लामा को अपना धर्म गुरु माना। 1959 के हमले के बाद दलाई लामा और हज़्ाारों तिब्बती लोग अपना इलाका छोड़कर भारत में शरण लेने आ गए। तब से दलाई लामा भारत में रहते हैं, और उनका पूरा प्रशासन हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला नाम की जगह में बसा है। दलाई लामा की मौजूदगी की वजह से भारत और चीन में राजनीतिक तनाव बना रहता है। इसकी वजह से दोनों देशों की सीमा पर सेना की कड़ी गश्त भी रहती है।
जितने समय से चीन ने तिब्बत पर कब्ज़्ाा किया है, करीब उतने ही समय में सौ देश आज़्ााद हो चुके हैं। लेकिन ज़्यादातर देशों ने तिब्बत को चीन का मुद्दा मानकर अपने को इससे दूर रखा है।
चीन दुनिया के शक्तिशाली देशों में से है। शक्तिशाली देशों में विरोध को दबाना आसान होता है। इस वजह से तिब्बत का रहन – सहन, वहां का धर्म, यहां तक वहां ले लोगों की भी संख्या कम होती जा रही है। अफसोस इस बात का है कि तिब्बतियों की आज़्ाादी के इस संघर्ष का कोई अंत नज़्ार नहीं आता। अगर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इसपर गौर करे तो शायद इस संघर्ष को मज़्ाबूती मिलेगी और तिब्बत को अपनी आज़्ाादी।
कब मिलेगी तिब्बत को आज़ादी?
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