नई दिल्ली। काले धन का मुद्दा गरमाया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र सरकार ने विदेशी बैंकों में कालाधन जमा करने वालों की छह सौ सत्ताइस नामों वाली सूची 29 अक्टूबर को कोर्ट को सौंप दी है। लेकिन अब सवाल उठता है कि काले धन को चुनावी मुद्दा बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी इस धन को कब देश में लाएगी?
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि धन लाने में समय लगेगा। क्योंकि इसमें कानूनी दांव पेंच हैं। उनका कहने का मतलब है कि जिन देशों में देश का धन जमा है, उन देशों से अनुमति लेनी होगी। यह इतना आसान नहीं है। क्योंकि यह धन उस देश की अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाता है। ऐसे में सभी देशों से बातचीत कर इसे बेहतर समझ के साथ ही सुलझाया जा सकता है।
अब दूसरा सवाल यह भी उठता है कि फिर लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के प्रमुख नेता और अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौ दिन में काला धन लाने का वादा क्यों किया था? क्या अरुण जेटली को काले धन के आड़े आने वाले कानूनी दांव पेंच की समझ पहले नहीं थी?
क्या है काला धन
काला धन रखने वालों में नेता, फिल्मी सितारे, खिलाड़ी, उद्योगपति और प्रशासनिक अधिकारी शामिल होते हैं। माना जाता है कि काला धन लोग कर बचाने के लिए जमा करते हैं पर इसका उपयोग अवैध हथियारों और ड्रग के कारोबार के अलावा आतंकवाद फैलाने में भी होता है। घूस से जमा धन, शेयर बाजार और दो नंबर के धंधों से होने वाली आमदनी को लोग दूसरे देश में जमा कर देते हैं। जिससे न तो उन पर कोई सवाल उठे और न ही उन्हें कर भरना पड़े।
काले धन की कहानी
काला धन का मामला अचानक सामने नहीं आया है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के समय 1956-57 में पहली बार पता चला था कि एक हज़ार रुपए से ज़्यादा धन विदेशी बैंकों में जमा है। उसके बाद इंदिरा गांधी के समय में 1976-77 में यह बढ़कर आठ हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा हो गया। इस तरह से तेज़ गति से यह काला धन बढ़ता गया पर इस पर कार्रवाई नहीं हुई। इस समय पांच लाख करोड़ काला धन विदेशी बैंकों में जमा है।