सरकार बाल श्रम अधिनियम के तहत आठ से चौदह साल तक बच्चन खा फ्री पढ़ाये लिखायें को नियम तो बना दओ हे पे ऊ नियम को कोनऊ ध्यान नई देत हे। हम बात करत हे महोबा जिला के एसे हजारन परिवार हे जोन सुबेरे से शाम तक कबाड़ बीन के जा फिर एक-एक, दो-दो रूपइया मांग के परिवार खा चलाउत हे। सरकार ईखे लाने कोनऊ ठोस कदम नई उठाउत हे। ऊसे तो हर साल छह महिना में कोनऊ न कोनऊ अभियान लागू जरूर होत हे पे अभियान खा कागज में चढ़ा के खत्म कर दओ जात हे। बच्चा ऊसई अधिकारी के सामने घूमत रहत हे।
ताजा उदाहरण आज भी कबरई कस्बा में जोन खनन को काम होत हे – ओते जाके देखो जाये तो सुबेरे से ही बच्चन की लाइन लग जात हे पत्थर फोड़े खा। सोचे वाली बात जा हे कि भला महोबा बस स्टाप कोन नई जात हे। ओते हजारन बच्चा कटोर लये नजर आउत हे पे कोनऊ खा नई नजर आउत हे। सबसे अच्छी बात तो जा हे कि महोबा तहसील दिवस में दुकान से चाय लाउत हे। कारखाना ओर फैक्ट्री की तो बात दूर हे जभे विभाग के कर्मचारियन खा एई नई दिखात, पर्दा डरो हे तो ढाबा दुकान ओर फैक्ट्री कोन देखन जेहे। श्रम परिवर्तन विभाग के अनुसार महोबा जिला में आज भी एसी कोनऊ जघा नइयां जितो बच्चन खा रखे जा सके।
अगर सरकार नियम बनाउत हे, तो ऊखे पलट के देखे खा चाही? ऊ नियम को कित्तो लाभ मिलत हे। सवाल जा उठत हे कि जभे सरकार अनाथ ओर असहांय बच्चान के लाने करोड़न रूपइया खर्च करत हे तो आखिर ऊ बजट किते जात हे का करन हे कि ऊखो लाभ नई मिल पाउत हे। सरकार खा कोनऊ भी नियम बनायें के बाद पलट के देखे खा चाही? नियम बनाये भर से यब कछू नई हो सकत हे। सरकार खा बाल श्रम के बारे बोहतई गम्भीरता से लेय खा चाही ईखो जवाब अपने कर्मचारियन से लेय, तभई जा समस्या दूर हो सकत हे।