उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी ने राज्य पोषण मिशन 1 नवंबर 2014 को शुरू किया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भरोसा जताया था कि हम कुपोषण को जड़ से खतम कर पाएंगे। दूसरी तरफ चित्रकूट जिले की डी.एम. का कहना है कि उन्होंने अभिभावकों को बहुत समझाया मगर लोग अपने अतिकुपोषित बच्चों को इलाज के लिए एन. आर. सी. भेजना नहीं चाहते-सवाल उठता है कि सरकार आखिर जागरुकता अभियान में क्यों सफल नहीं हो पा रही है?
जिला चित्रकूट, ब्लाक कर्वी, गांव कालूपुर और खोह। चित्रकूट जिले में दो सौ सत्तासी बच्चे अतिकुपोषित हैं। यह सूची 2014 में तैयार की गई है। प्रदेश में कुपोषण दूर करने के लिए हाल ही में सर्वे करके एक सूची तैयार की गई है। जिले की डी.एम. नीलम अहलावत यहां को दो गांवों कालूपुर और खोह को गोद लेकर सीधे वहां की निगरानी कर रही हैं।
कालूपुर गांव में रहने वाली बेला ने बताया कि उनकी लड़की चार महीने की है और अतिकुपोषित है। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि वह एन.आर सी क्यों नहीं गईं तो उनका जवाब था कि हम फिर घर के दूसरे काम कौन करेगा? हम प्राइवेट अस्पताल से ही इलाज करा रहे हैं। अब तक पांच हजार रुपए खर्च हो गए हैं। यहां की मंदू नाम की औरत का डेढ़ साल का बेटा धर्मराज अतिकुपोषित है। लेकिन वह भी उसे एन.आर.सी नहीं ले जाना चाहती क्योंकि वहां पर मां को मिलने वाले रोज के सौ रुपए से घर का खर्चा नहीं चल सकता। दूसरे बच्चों की देखभाल भी कौन करेगा? यहां की उर्मिला का लड़का धनंजय भी कुपोषित है। आंगनबाड़ी कार्यकत्र्ता निशा ने उन्हें एन.आर.सी. ले जाने की सलाह दी। लेकिन उर्मिला का कहना है कि अगर हम वहां चले गए तो हमारे पशुओं को चारा और परिवार को खाना कौन देगा?
डी.एम. नीलम अहलावत ने बताया कि गोद लिए दोनों गांव खोह और कालूपुर को मिलाकर तेरह बच्चे अतिकुपोषित हैं। अब तक चार बच्चों को एन.आर.सी. भेज पाए हैं। बाकी को मैंने बहुत समझाया लेकिन वह तैयार ही नहीं होते। एन.आर.सी जाकर जब पत्रकारों ने देखा तो वहां पर फरवरी महीने में केवल एक बच्चा भर्ती हुआ था। जबकि जनवरी महीने में केवल चार बच्चे अपना इलाज करवाने आए थे। इस केंद्र की क्षमता दस बेडों की है।