अभी ज्यादातर गांव अउर शहर में डायरिया अउर मस्तिष्क ज्वर (दिमागी बुखार) हो रहल हई। एक ओर डायरिया के मरीज प्राईवेट से खरीदई छथिन त दोसर ओर दिमागी बुखार के ईलाज लेल कोई उचित व्यवस्था न हई। जबकि दिमागी बुखार से लगभग सौ से उपर बच्चा के मौत हो गेलई।
ऐई के उपचार के लेल हर उपस्वास्थ्य केन्द्र पर कुछ भी दवा के सुविधा रहे के चाही ताकि तुरंत राहत मिल सके। लेकिन उपस्वास्थ्य केन्द्र त दूर हई सदर अस्पताल में भी लोग प्राईवेट से दवा खरीदई छथिन। जईसे शिवहर जिला के राजेश साह कहलथिन कि हम अपना भाभी के ईलाज के लेल भर्ती कईली लेकिन तीन दिन में तीन हजार के दवा प्राईवेट से खरीदली। दोसर ओर दिमागी बुखार से बच्चा के मौत के संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ ही रहल हई। अउर सरकारी अस्पताल में प्राईवेट डाॅक्टर आके इलाज करई छथिन त सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र रहे के कोई जरूरी ही न रह गेलई। कोन कारण हई कि सरकारी अस्पताल से लोग सब संतुष्ट न होई छई। जबकि सरकार कड़ोरो रूपईया स्वास्थ्य विभाग पर खर्च करई छथिन।