पति बने, पत्नी बने, ननद बने, भौजाई बने। चाचा बने, चाची बने या भाई बने। कोई भी बने मगर प्रधान तो घर का ही बने।
बांदा और चित्रकूट। बुंदेलखंड के बांदा जि़ले में कई गांव ऐसे हैं। जहां एक पद के लिए तीस उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। एक ही परिवार के बाप, बेटा, भाई, ननद, भाभी, देवरानी, जेठानी अलग-अलग पार्टियों से चुनावी मैदान में हैं। जैसे कमासिन ब्लाॅक के दिघवट गांव में एक ही परिवार से दादा प्रीतम, भतीजी सावित्री और चचेरे भाई धर्मराज, गोंदलाल, सुनील प्रधान पद के प्रत्याशी हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि गांव के लोग वोट किसको देंगे? कौन बनेगा प्रधान? कौन करेगा विकास?
चित्रकूट जि़ले के मऊ ब्लाॅक में सत्तावन ग्राम पंचायत हैं। लेकिन वहां से सात सौ प्रधान पद के उम्मीदवार मैदान में हैं यानी एक गांव के लिए तेरह उम्मीदवार हैं। और आश्चर्य की बात यह है कि ग्राम सदस्य का चुनाव कोई नहीं लड़ना चाहता है। गांव में सब प्रधान ही बनना चाहते हैं। दरअसल लोगों की सोच होती है कि एक ही परिवार या घर से चार लोग खड़े होंगे तो कोई न कोई तो जीतेगा ही। मतलब किसी एक के जीतने से नहीं बल्कि इससे है कि घर में प्रधानी कैसे आए?