केरल के कन्नूर जिला में स्थित कल्लियास्सेरी के पास बना पारस्सिनी कड़ावु एक अनोखा मंदिर है। ये सभी जातियों के लिए सदैव खुला रहता है। यहां के पुजारी पिछड़े समुदायों से हैं। इसके देवता, मुथप्पन को ‘गरीबों का भगवान’ कहा जाता है। यहाँ प्रसाद के रूप में ताड़ी और मांस चढ़ाया जाता है। यहाँ कांस्य की बनी कुत्तों की मूर्तियों भी पूजा जाता है क्योंकि मुथप्पन शिकारियों के भगवान हैं।केरल के कन्नूर जिला में स्थित कल्लियास्सेरी के पास बना पारस्सिनी कड़ावु एक अनोखा मंदिर है। ये सभी जातियों के लिए सदैव खुला रहता है। यहां के पुजारी पिछड़े समुदायों से हैं। इसके देवता, मुथप्पन को ‘गरीबों का भगवान’ कहा जाता है। यहाँ प्रसाद के रूप में ताड़ी और मांस चढ़ाया जाता है। यहाँ कांस्य की बनी कुत्तों की मूर्तियों भी पूजा जाता है क्योंकि मुथप्पन शिकारियों के भगवान हैं। 1930 के दशक में, मुथप्पन शिकार के देवता माने जाते थे। खास कर वामदल से संबंधित उन राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों के देवता जो अंग्रेजों से छुपते फिर रहे थे। यह मंदिर होना नास्तिक और आस्तिक के बीच इस अनोखे गठबंधन का तार्किक आधार था। मुथप्पन मंदिर आज भी 4,000 लोगों को रोजाना और 6,000 लोगों को सप्ताह के अंतिम दिनों में खाना खिलाता है। वह इस इलाके के सभी स्कूली बच्चों को हर दिन खाना खिलाता है। वर्ष 1928 में, कल्लियास्सेरी में केवल 24 परिवारों के पास 43 प्रतिशत जमीनें थीं। आज, 13 परिवारों के पास पांच एकड़ से अधिक भूमि है। इसके अलावा, समस्त भूमि में उनका हिस्सा केवल छह प्रतिशत है। कल्लियास्सेरी निवासियों के खाने-पीने में भी काफी सुधार हुआ है। यहां दूध और मांस की बिक्री में वृद्धि हुई है। और यहां के मजदूर पुरुष व महिला जिस तरह कपड़े पहनते हैं, उसे देखकर आप यह नहीं कह सकते कि ये मज़दूर हैं।साभार:
पारी, 6 जुलाई 2017