लखनऊ शहर के श्रमविहार नगर में उषा अपने परिवार के साथ रहती है। उषा का परिवार कई पीढि़यों से वहां रह रहा है। उषा घर परिवार चलाने और बच्चों को पढ़ाने के लिए घर पर ही लोहे की छन्नीयां बना कर उन्हें बाजार में बेचती है। एक छन्नी को बनाने में पूरा एक दिन लग जाता है।
उषा अपने दो बच्चों के भविष्य के बारे में बताते हुए कहती हैं कि “मेरे दोनों बच्चे पढ़ रहे हैं और मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चे भी यही काम करें। इसलिए मैं चाहती हूं कि वो अच्छी पढ़ाई करें।”
अपने काम के बारे में बताते हुए कहती हैं, अच्छी कमाई और अधिक छन्नियां बनाने के लिय मुझे हफ्ते भर कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इन छन्नीयों को बनाने के लिए सबसे पहले लोहे का चादर खरीदते हैं। यह चादर 150 रुपये किलों के हिसाब से आती है। इसके बाद चादर में से गोल आकार की छन्नी, जितनी बड़ी छन्नी बनानी हो, उस साइज के गोले काटते हैं। फिर कील से एक-एक छेंद करते हैं। इतनी लम्बी प्रक्रिया के बाद हफ्ते भर में 20 से 80 छन्नी बन पाती है। मुश्किल तक होती है जब इन्हें बाजार में अच्छे दाम नहीं मिलते। बाजार में एक छन्नी मात्र 20 रुपए में बिकती है।
कड़ी मेहनत के बाद सिर्फ 20 रुपए मिलना बहुत उदास करता है लेकिन यह मेरा हुनर है और अब तो यह मेरी पहचान भी बन गया है।