सरकार या सोंच के गांव मा उपकेन्द्र बनवाइस रहै कि गांव के मड़इन का सुविधा मिली। अगर चित्रकूट जिले मा उपकेन्द्र के बात कीन जाये कि कहां उपकेन्द्र बने हवैं अउर केत्ते दिन से बंद परे हवैं तौ या बात गलत नहीं आय। यहिका उदाहरण ब्लाक मानिकपुर, कस्बा मारकुण्डी का हवै।
हिंया उपकेन्द्र लगभग तीन बरस से बंद हवै। अगर वा उपकेन्द्र रोजै खुलै तौ मड़इन का तीस किलो मीटर किराया भाड़ा लगा के मानिकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र न आवैं का परै। मड़ई छोट-छोट बीमारी अउर बच्चन का टीका लगवावैं खातिर परेषान रहत हवंै। सरकार तौ या सोंच के गांव-गांव उपकेन्द्र बनवाइस रहै कि मड़इन का सुविधा मिलै। समय-समय से गर्भवती मेहरियन अउर बच्चन के टीका लागैं, पै इं सुविधा मिलै के बात तौ दूर के हवै। उपकेन्द्र तौ खुलत तक नहीं आय। अगर या समस्या का लइके जिला अस्पताल के डाक्टर से बात कीन जात हवै तौ पता परत हवै कि जिला मा कुल एक सौ उन्तालिस उपकेन्द्र हवै। इं सबै उपकेन्द्र चालू हालत मा हवैं। का विभाग वालेन के कउनौ जिम्मेदारी नहीं रहत आय कि उंई पता करैं कि कहां का, का समस्या हवै। सरकार का भी इं जिम्मेदारी से जुड़े विभाग वालेन से जवाबदेही लें के जरूरत हवै। तबहिने या समस्या का हल होइ सकत हवै। नहीं तौ समस्या जस के तस बनी रहत हवै। यहिके खातिर सरकार का ध्यान देब जरूरी हवै।
उपकेन्द्र खुलब जरूरी हवै
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