आरी-जारी की शाही कढ़ाई बहुत खास मानी जाती है। इसकी शुरूआत नवाबों की टोपी की कढ़ाई से हुई थी। सोने चांदी के तार और सच्चे मोतीयों से आरी-जारी की कढ़ाई होती थी।
अब सिर्फ जमाना बदला है, लागों का शौक नहीं। अब सोने-चांदी का तो काम बंद हो गया है लेकिन चमक-दमक में कोई कमी नहीं है। आज भी इसका काम लाखों रुपय में किया जाता है। सलवार, कुर्ता, दुपट्टा, साड़ी, लाचा, शेरवानी, नागरे, और सैंडल में भी आरी-जारी का काम होने लगा है। आज कल इस काम को बहुत ही सराहा जा रहा है। दुनिया के कई बड़े शहरों में आरी-जारी का काम बहुत मशहूर है जिसमें लखनऊ, हैदराबाद, और मुम्बई जैसे शहर शामिल हैं।
आज भी है नवाबों वाली बात
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