11 दिसंबर 2013 को देश के अलग अलग हिस्सों में ‘मानवाधिकार के काले दिवस’ का नाम दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के आपराधिक धारा 377 को कायम रखते फैसले का सीधा असर समलैंगिक रिश्तों पर पड़ा पर इसका विरोध लाखों लोगों ने किया।
1861 में बने अंग्रेज़ों के ज़माने के इस कानून को खुद इंगलैंड में पलट दिया गया है। मार्च 2014 में इंगलैंड में पहला समलैंगिक विवाह अभी से होना तय हो चुका है। इस धारा के अनुसार ‘अप्राकृतिक शारीरिक सम्बंध’ बनाना अपराध माना गया है। यहां ‘प्राकृतिक’ और जायज़ शारीरिक सम्बंध सिर्फ ऐसे सम्बंधों को माना गया है जो आदमी और औरत के बीच बच्चे पैदा करने के लिए बनाए जाएं। इस कानून में बच्चों और जानवरों के साथ शारीरिक सम्बंध बनाना भी शामिल है। अगर कोई दो पुरुष या कोई दो औरतें एक दूसरे से प्रेम करती हैं तो क्या यही कानून उन पर भी लागू होना चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ दिया कि यदि इस कानून से समलैंगिक लोगों के अधिकारों का हनन होता है तो संसद में इसे बदला जा सकता है। कोर्ट ने ऐसा फैसला देकर अधिकारों के लिए समलैंगिक लोगों की लड़ाई को दो कदम पीछे कर दिया। पहले, एक लंबी लड़ाई के बाद समलैंगिक लोगों को दिल्ली हाई कोर्ट ने समान नागरिकों का दर्जा दिया और फिर उच्चतम न्यायालय ने उन्हें एक आपराधिक धारा का मोहताज बना दिया।
समलैंगिकता के प्रति लोगों और संस्थानों को अपनी समझ बनाने की ज़रूरत है। समाज हिचकिचाता है क्योंकि समलैंगिकता शादी द्वारा बनाए गए पुरुष और महिला के बीच के घिसे पिटे नियमों से अलग है। समलैंगिकता दो सहमत, बालिग लोगों के बीच प्रेम का एक रिश्ता है। इसे बलात्कार, बच्चों के साथ शारीरिक सम्बंध बनाने और अप्राकृतिक मानना बेतुकी बातें हैं, और इस ही लिए एक लोकतांत्रिक मानवीय समाज में समलैंगिकता को अपराध नहीं माना जा सकता है।
आखिर किस बात की हिचकिचाहट?
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