दहेज जे समाज के लेल अभिषाप बन गेल हई। केतना भी लोग में जागरूकता फैलायल जाय चाहे कुछ हो। लेकिन एकर प्रभाव आई भी बनल हई।
अभी ताजा घटना 10 मई 2013 के मोकिमा खातून के दहेज के लेल जलायल गेलई। इनकर त अभी हाथ के मेंहदी भी न छुटल रहई। उनकर शादी मांर्च 2013 के ही भेल रहई। मोकीमा ही न आई हर रोज कोई न कोई बेटी दहेज के आग में जलई छई। एकर संख्या ऐई के लेल न बतायल जा सकई छई कि दस में चार ही घटना पुलिस में दर्ज कयल जाई छई। ओहू में दू गो के ही सजा मिल पवई छई। जेतने दहेज विरोधी कानून बनई छई ई घटना ओतने बढ़ल जा रहल हई। अब सवाल इ उठई छई कि दहेज हत्या के लेल बाहर से त कोई आदमी न अवई छई। हमरा समाज के ही लोग एइ धिनौना कांड के अंजाम देई छथिन। हर कोई बहु के अगर बेटी मान लेतई त शायद इ घटना देखे के न मिलतई। कुछ गलती अपना सुरक्षा व्यवस्था के भी हई। एकर नियम के कड़ा से पालन न कयल जा रहल हई। दहेज के लेल हत्या करे वाला के करा से करा सजा देल जाय जइसे एहन घटना के अजाम देवे से पहिले लोग दस बेर सोचे।