लगभग पांच सौ साल पहले बाबर नाम का एक राजा था। उसने मुगल साम्राज्य की नींव रखी थी। वह इतना ताकतवर था कि ग्यारह-बारह साल की उम्र में किलों को फतह करना शुरू कर दिया था। उसने बाबरनामा में अपनी दास्तान लिखी। इस दास्तान में बाबर की अलग ही तस्वीर देखनें को मिलती है कि वह कैसे अपना दिल हार बैठता है। तो आइये आज हम इतिहास के पन्ने पलटते हैं।
उस समय उर्दू बाजार में एक लड़की थी उसका नाम बाबरी था। हमनाम यानि अपने नाम जैसे नाम वाले इस नाम के साथ भी क्या लगाव निकला। इससे पहले मै किसी पर फ़िदा नहीं हुआ था। किसी से प्यार मोहब्बत की बातें नहीं हुई थी, दिल्लगी का नाम तक नहीं सुना था। अब यह हुआ कि कविताएं तक कहने लगा। उस परी चेहरे पर हुआ आशिक बल्कि अपनी बेख़ुदी खो बैठा। मै आशिक बना बैठा, बर्बाद हुआ जा रहा था, मगर बाबरी को कोई परवाह नहीं थी। लेकिन कभी बाबरी मेरे सामने आती तो लाज और सकुचाहट के मारे देख भी नहीं पाता था ऐसे में उससे मिलने और बातें करने का सवाल ही नहीं उठता था। दिल की घबराहट के मारे उसके आने का शुक्रिया भी नहीं कर पाता था न कोई शिकायत कर पाता था। आशिकी और दीवानगी की उन्हीं दिनों की बात है। मैं अपने चाकरों के साथ चला जा रहा था तब बाबरी से मेरा आमना-सामना हुआ, तो मेरी अजब हालत हो गई थी। मुंह से बोल भी नहीं निकल पाया। उस समय फ़ारसी भाषा का ये शेर याद आ गया था- गड़ा जाता हूं जब-जब यार का रूप देखता हूं मैं, मुझे सब देखते हैं और उसे देखता हूं मैं। यह शेर मेरे हाल पर सोला आना सच था। प्यार के जोश के कारण मैं जंगल गली मुहल्लें मारा-मारा फिरता रहता था न चलने में चैन, न ठहरने में चैन था।
Published on Feb 9, 2018