21 जनवरी की रात आंध्रप्रदेश में हीराखंड एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने से 32 लोगों की मौत हो गई, जबकि कई यात्री घायल हो गए। यह ट्रेन छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से निकलकर ओड़ीशा में भुवनेश्वर जा रही थी। आंध्रप्रदेश और ओड़ीशा की सीमा पर कुनेर स्टेशन के पास इसके आठ डिब्बे पटरी से उतर गए।
हालांकि यह पहली घटना नहीं है। बुलेट ट्रेन, फास्ट ट्रेन, आधुनिक साज-सज्जा से युक्त स्टेशन, वाई-फाई की सुविधा, सफाई को लेकर रेटिंग और मूलभूत जरूरतों को छोड़ कर सरकार दिखावटी लुभावनी योजनाओं पर अधिक व्यय कर ही है। शायद इसलिए अब सरकार दुर्घटनाओं पर मुआवजे बांटने के साथ, इसका दोष दूसरों पर मढऩे का आसन काम कर रही है। सिर्फ यही नहीं, किसी भी हादसे के लिए आईएसआई, माओवादी, पड़ोसी देश के कट्टरपंथियों को जिम्मेदार बता कर अपना पल्ला झाड़ रही है।
आंध्रप्रदेश की इस घटना के पीछे भी आशंका जतलाई जा रही है कि यह माओवादियों की साजिश का नतीजा हो सकता है। कानपुर दुर्घटना के पीछे भी जो कारण बताया जा रहा है, हो सकता है उसमें सच्चाई हो। लेकिन मूल प्रश्न फिर भी अपनी जगह बना हुआ है कि आखिर रेल दुर्घटनाएं रुकेंगी कैसे? अगर शड्यंत्र रचे जा रहे हैं तो उसे रोकने के सरकार के पास क्या उपाय हैं?
क्या केवल कारण बताकर वह अपनी जिम्मेदारी से हाथ झटक सकती है? जबकि सरकार के पास पूरा खुफिया तंत्र, सूचना तंत्र, सुरक्षाबल और भरपूर रेल बजट है जो भारतीय रेल की वर्तमान स्थिति को सुधारने में सक्षम है।
आंध्र प्रदेश में हीराखंड एक्सप्रेस पटरी से उतरी, सरकार फिर मौन!
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