लखनऊ। लखनऊ को नवाबों का शहर कहा जाता है, लेकिन यहां के स्वाद का नवाब टुंडे कबाब है। सदा स्वाद के कारण चर्चा में रहने वाले यहां के मशहूर टुंडे कबाब इन दिनों असली और नकली के चक्कर में फंसे पड़े हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने 6 जनवरी को लखनऊ प्रशासन को टुंडे कबाब की नकली दुकानें बंद कराने के आदेश दिए हैं।
टुंडे कबाब की शुरुआत दादा जी मुराद अली नाम के एक व्यक्ति ने करीब डेढ़ सौ साल पहले की थी। दादा जी विवाहित नहीं थे। मोहम्मद उस्मान इनके भाई के बेटे का बेटा है और दूसरा मोहम्मद मुस्लिम उनकी बेटी के बेटे का बेटा है।
मोहम्मद उस्मान के अब्बू ने मुराद अली के साथ ही काम शुरू किया था और मुस्लिम ने कुछ ही साल पहले टुंडे के नाम से लखनऊ में दुकान खोली। अब उस्मान का कहना है कि मोहम्मद मुस्लिम के अब्बू ने तो कभी दादा जी के साथ काम ही नहीं किया फिर वह असली स्वाद मुस्लिम तक कैसे पहुंचा?
दिल्ली हाई कोर्ट का भी यही कहना है कि टुंडे कबाब का स्वाद में क्या राज़ छिपा है, इसे तो वही बता सकता है जिसने इसे शुरू करने वाले ने बताया हो। ऐसे में उस्मान ही इसके असली वारिस हैं।
मुस्लिम ने बताया कि उस्मान उन्हें अपनी दुकान में मज़दूर ही बनाए रखना चाहते हैं। मुस्लिम ने 1990 में टुंडे कबाबी की दुकान खोली थी, जिसे 18 जनवरी 2012 को उस्मान ने बंद करवा दिया था। 8 अक्टूबर 2013 में फिर लखनऊ वाले टुंडे कबाबी नाम से दुकान खोली तो इस पर भी उन्हें दिक्कत है।
असली टुंडे कबाब के पक्ष में फैसला
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