नाट्य लेखक और निर्देशक मुद्राराक्षस का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। 83 साल के साहित्यकार कई बीमारियों से ग्रस्त थे। दोपहर को तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था लेकिन रास्ते में ही उनका निधन हो गया।
उनका जन्म लखनऊ के पास बेहटा गांव में 21 जून 1933 को हुआ। उनका मूल नाम सुभाष चन्द्र वर्मा था। लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए किया। छात्र जीवन से ही वामपंथी आंदोलन, साहित्य व संस्कृति से जुड़ गये।
1955 से 1976 तक वे कोलकता व दिल्ली में ‘ज्ञानोदय’ व ‘अणुवत’ जैसी पत्रिका में काम किया। बाद में वे आकाशवाणी, दिल्ली में नौकरी की। वहां उन्होंने पहला मजदूर संगठन बनाया। इस दौरान प्रसारण संस्थान में कलाकारों, लिपिकों, चतुर्थ श्रेणी व तकनीकी कर्मचारियों की मांगों को लेकर आंदोलन चलाया। इमरजेन्सी के दौरान उनके ये काम उनकी साहसिकता का परिचायक है। 1976 में वे लखनऊ आ गये और तब से यह शहर ही उनकी कर्म भूमि बन गया। यहां के सांस्कृतिक, सामाजिक व राजनीतिक आंदोलनों के केन्द्र में रहे।
मुद्राराक्षस ने 50 के आसपास से लिखना शुरू किया था। कहानी, उपन्यास, कविता, आलोचना, पत्रकारिता, संपादन, नाट्य लेखन, मंचन, निर्देशन जैसी विधाओं में सृजन किया। दलित व साम्प्रदायिकता जैसे जवलंत सवालों पर चर्चित व विचारोत्तेजक लेखन किया। धर्म ग्रन्थों की मीमांसा के साथ शहीद भगत सिंह के जीवन पर उन्होंने अदभुत रचनाएं की। चित्रकला, मूर्तिकला एवं संगीत में उनकी सक्रिय रुचि थी। अनेक नाटकों, वृतचित्रों का निर्माण और निर्देशन उन्होंने किया।
मुद्राराक्षस ने 10 से ज्यादा नाटक, 12 उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह, तीन इतिहास किताबें और पांच आलोचना सम्बन्धी पुस्तकें लिखी हैं। इसके अलावा उन्होंने 20 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन भी किया। उन्होंने ज्ञानोदय और अनुव्रत जैसी तमाम प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है।
मुद्राराक्षस अकेले ऐसे लेखक थे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तोलकर सम्मानित किया गया। वे अक्सरहां कहते कि “यह ऐतिहासिक पाप होगा, अगर हम चुप रहे। बदलाव का इतिहास रचने के लिए लड़ाई में उतरना जरूरी है। हमें इसलिए लिखना है ताकि जो लड़ रहे हैं, उनका भरोसा न टूटे’’।
अवध की धरोहर, साहित्यकार ”मुद्राराक्षस“ का हुआ निधन
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