लखनऊ की रहने वाली नसरीन आज अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जी रही हैं। हालाँकि यह आसान नहीं था। उन्हें भी कंटीले रास्तों से हो कर यह मंजिल पायी थी। नसरीन सदभावना ट्रस्ट नामक एक गैर-सरकारी संगठन में सूचना विभाग में कार्यरत हैं।
वह बताती हैं कि अक्सर उन्हें जल्दी घर आने, देर से आने और कहाँ आने-जाने जैसे सवाल पूछे जाते थे। सिर्फ घर वाले ही नहीं बल्कि आस-पड़ोस के लोग भी इस तरह की बातें बनाया करते थे।
वह आगे बताती हैं, मेरी शादी 1999 में हुई, तब दो महीनें के बाद ही हम अलग रहने लगे थे। पति कुछ काम नहीं करते थे तो मैंने दूध बेचना शुरू किया। मेरे पति पर कुछ पिछले कोर्ट केस चल रहे थे उसकी वजह से एक दिन पुलिस ने उन्हें पकड़ा और साथ ही हमारा व्यापार भी चौपट हो गया। उसके बाद मैंने स्कूल में पढ़ाना शुरू किया, बच्चों को ट्यूशन दिए और सिलाई सीखी। जैसे-तैसे घर और बच्चों की पढ़ाई का खर्च चल रहा था।
वह आगे बताती हैं, कुछ समय बाद मैं सदभावना ट्रस्ट से जुड़ी और यहाँ काम सीखा। आज मेरे पति इस दुनिया में नहीं हैं और अब मैं ही अपने बच्चों की पूरी जिम्मेदारी अकेले उठा रही हूँ। जीवन में बहुत मुश्किलें आयीं और मुसीबतें सर पर रहीं लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मुझे ख़ुशी है कि मैंने ज़िन्दगी के हाथों हार कबूल नहीं की और हर काम सीखा।
वह कहती हैं, मैं चाहती हूँ कि मेरी जैसी तमाम बहनें और महिलाएं हिम्मत करें और सामने आयें। मैं खुद उनकी मदद के लिए तैयार हूँ। हमें हमेशा एक बात याद रखनी चाहिये कि एक महिला अगर कुछ करने को ठान ले तो वो उसे पा कर ही रहती हैं और यही हमारी जीत है।
रिपोर्टर- नसरीन
Published on Apr 19, 2017