इस लेख को खबर लहरिया के एक पत्रकार ने लिखा हैं। यह लेख उनकी राय और अनुभव पर आधारित है।
इस मार्च, ग्रामीण पत्रकारिता में महिलाओं की भूमिका में एक कदम और बढ़ाते हुए खबर लहरिया ललितपुर पहुंचा। मकसद था कि वहां की कुछ ग्रामीण महिलाओं के साथ मिलकर, खबर चुनने से लेकर पत्रकार बनने तक के सफर का नींव रखा जा सके। इसी प्रयास में इलाके की सात महिलाओं ने हिस्सा लिया। इनमें एक महिला प्रशिक्षु स्नातक, दो बारहवीं और बाकी 7वीं, 8वीं, 9वीं तक की पढ़ाई कर चुकी थी। इन महिलाओं में ज्यादातर वह थी जिनकी शादी कम उम्र में हो चुकी थी। शायद उनका यह पहला सफर था जब वे अपने गांव से बाहर निकल कर दुनिया से मुखातिब थी। ग्रामीण पत्रकारिता को समझना जितना इन महिलाओं के लिए नया था, उतना ही एक शहरी महिला पत्रकार होने के नाते मेरे लिए नयी बात थी।
इसी दौरान यह सवाल भी सामने आया कि शहरों में हर रोज कुकुरमुत्ते की तरह पत्रकारिता का प्रशिक्षण देने वाले संस्थान खुल गए हैं, जहां से हजारों की संख्या में हर साल पत्रकार निकाले जाते हैं। आखिर क्यों ग्रामीण क्षेत्रों में एक भी पत्रकारिता संस्थान नहीं है?
प्रशिक्षण के दौरान यह भी समझ आयी कि जिन इलाकों में खबर लहरिया काम करती है और जो महिलाएं रिपोर्टिंग करती हैं उनका अनुभव, पृष्टभूमि, हमारे वैश्विक नजरिये से बहूत अलग है। महिलाओं की आवाज को बढ़ावा देना कितना जरूरी है यह मुझे तब समझ में आया जब मैंने लोकल और नेशनल मीडिया की स्थिति देखी।
प्रिंट मीडिया हो या टीवी उनका प्रसारण और पहुंच तो भले ग्रामीण क्षेत्रों तक होता है लेकिन इन माहिलाओ के लिए उस मुख्यधारा की मीडिया में कुछ भी प्रसारित नहीं किया जाता है।
प्रशिक्षण के बाद जब दिल्ली लौट आयी हूं जब 23 साल की चमकीली साड़ी पहनी एक लड़की प्रशिक्षण के दौरान अपने रोते हुए बच्चे को दूध पिला रही है और हमारे हर एक बात को बड़े गौर से सुन रही है।
इन्हीं महिलाएं जब कलम उठायेंगी और अपने आसपास के जीवन, उसके संघर्ष, समस्याओँ की कहानी लिखेंगी तो असल मे पत्रकारिता जनता का माध्यम कहला पायेगा।