जला चित्रकूट। यहां अन्ना प्रथा कई सालों से चली आ रही है। खेती कटते ही जानवरों को लोग छुट्टा कर देते हैं जिससे लोगों की कटी फसल का नुकसान होता है। साथ ही सड़कों पर जानवरों का झुण्ड लग जाता है। इससे एक्सीडेन्ट भी होते हैं। शासन प्रषासन इस पर कुछ कारवाही नहीं कर रही है।
पहाड़ी ब्लाक के अषोह और खरसेडा गांव के बाबूलाल गजराज का कहना है कि अन्ना जानवरों से हमारे गांव के हजारों लोग परेषान हैं। मूंग, चना, गेहूं, बेर्रा की फसलों को जानवर खा जाते हैं। सरकार फाटक भर बनवा देती है पर अन्ना प्रथा चलती रहती है।
रामनगर ब्लाक के लोधौरा बरेठी के लोगों ने बताया कि अन्ना प्रथा की इस वजह से हम लोग दूसरी फसल नहीं पैदा कर पाते हैं।
मऊ ब्लाक के अहिरी गांव की सुषीला, धनपतीया समेत कई लोगों ने बताया कि लोगों के जानवर खेतों में घुसकर फसल नष्ट कर देते हैं। षिकायत करो तो मारपीट तक हो जाती है।
मानिकपुर ब्लाक के कई गांव के लोगों का कहना है कि अन्ना प्रथा के चलते रहने से गरीब लोगों को ज्यादा दिक्कत होती है। बड़े लोगों के जानवर खुले घूमते हैं तो हमारे साथ गाली गलौज किया जाता है।
इस मामले में जिला पषु चिकित्साधिकारी डाक्टर ए.के. गहलोत ने बताया-हमारे जिले में पषुओं को बांधने के लिए नवासी चारा गाह पैंतीस ग्राम पंचायतों पर बने हैं। उनमें बाउन्ड्री और गेट लगवाने के लिए साठ लाख पिंच्यान्वे हजार रुपय का बजट बना कर प्रस्ताव शासन को भेजा है। इस इलाके के लोग भी नहीं चाहते कि अन्ना प्रथा बन्द हो।
अन्ना प्रथा से बेहाल बुन्देलखण्ड
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