नई दिल्ली। 14 नवंबर को केंद्र मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति, जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून में बदलावों को मंज़ूरी देते हुए उसे और सख्त बनाया। मंत्रिमंडल के दो वरिष्ठ मंत्री – शरद पवार और अजीत सिंह इन बदलावों के खिलाफ थे तब भी मंत्रिमंडल में इन्हें पास कर दिया गया।
जो बदलाव लाए गए हैं, उनमें मुख्य है कि केवल इस बात की जानकारी होना कि जिस व्यक्ति पर अत्याचार हो रहा है वह अनुसूचित जाति (एस.सी.) या जनजाति (एस.टी.) समुदाय का है, अपने आप में ऐसा गुनाह है जिसके रहते किसी अपराधी पर इस कानून के तहत कारवाई की जा सकती है। नए बदलावों के अनुसार यदि किसी एस.सी. या एस.टी. व्यक्ति पर चुनाव से नाम वापस लेने का दबाव डाला गया तो यह भी इन अत्याचार निरोधक अधिनियमों के खिलाफ माना जाएगा। साथ ही, यदि किसी अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को किसी भी सार्वजनिक स्थान – जैसे कि धार्मिक स्थलों में आने से रोका गया या कुंए या ट्यूबवेल का प्रयोग करने से रोका गया तो ऐसा करने वाले पर इन अधिनियमों के तहत कड़ी कारवाई की जाएगी।
अजीत सिंह और शरद पवार का मानना था कि इन अधिनियमों का गलत इस्तेमाल हो रहा है और कई बार दो ऊंची मानी गई जाति केे लोग एक दूसरे से बदला लेने के लिए नीची मानी गई जाति के लोगों का इस्तेमाल करते हैं। पर सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री कुमारी शैलजा ने बताया कि देश के सभी राज्यों ने इन बदलावों को स्वीकार कर लिया है।
अनुसूचित जाति और जनजाति कानून में सख्ती
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