खबर लहरिया सबकी बातें नया पंचायती राज कानून हरियाणा की जगह अगर उत्तर प्रदेश में लागू होता तो क्या होता?

नया पंचायती राज कानून हरियाणा की जगह अगर उत्तर प्रदेश में लागू होता तो क्या होता?

kshetriya 2ज़रा सोचिए -11 दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत का नया कानून हरियाणा राज्य की जगह उत्तर प्रदेश में लागू किया होता, तो क्या होता?
14 दिसंबर 2015 को ग्राम पंचायत चुनाव के नतीजे सामने आए।  चुनाव आयोग ने कहा कि नई सरकार औरतों और युवाओं की है।  औरतों को चवालीस प्रतिशत प्रधान पद की सीटें मिली हैं – युवा, वृद्ध, साक्षर और अनपढ़, कठपुतली उम्मीदवार और स्वतंत्र महिलाएं।  अगर उत्तर प्रदेश में ये न्यूनतम योग्यता का कानून लागू होता तो क्या इनके लिए यह जीत मुमकिन होती?
हरियाणा में नए पंचायत कानून के तहत उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम योग्यता लागू होगी।  आदमियों के लिए मेट्रिक पास, औरतों के लिए आठवीं पास और दलित उम्मीदवारों के लिए पांचवी पास होना अनिवार्य है।  सभी उम्मीदवारों के घरों में शौचालय और किसान उम्मीदवारों पर कोई क़र्ज़ नहीं होना चाहिए।  इन शर्तों के साथ उत्तर प्रदेश में कितने लोग चुनाव लड़ पाते? राजस्थान में जहां यह कानून कुछ समय पहले लागू हुआ, कई गाँव हैं जहां प्रधान ही नहीं हैं।  यू पी में भी कुछ ऐसा ही होता।  बुंदेलखंड में कौनसे किसान योग्य होते जब अस्सी प्रतिशत पर क़र्ज़ का बोझ मंडरा रहा है?
पिछले दो -तीन महीनों में खबर लहरिया ने कई उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के बारे में गहराई से खबरें लिखी हैं। महिला उम्मीदवारों के प्रचार में ज़्यादातर हमें कठपुतली उम्मीदवार के रूप में खड़ी हुई नज़र आईं।  ये महिलाएं पढ़ी -लिखी हों या न हों, घूँघट में हों या न हों, सत्ता की डोर घर के पुरुष या परिवार के अन्य लोग संभाल रहे थे।
जो औरतें अपने बूते पर खड़ी थीं और खुद अपने प्रचार में जुटी थीं, उन्हें कम ही वोट मिले। ​जैसे चित्रकूट जिल्ला की सुशीला देवी।  29 साल की एक दलित, एकल महिला, सुशीला – उनके चुनाव के पोस्टर लोगों ने फाड़ डाले, उनके भाषण पर थूका और हर स्तर पर उनकी ज़िम्मेदारी लेने की क्षमता पर सवाल उठाए। वो पढ़ी-लिखी महिला थीं – इसका असर उनका विरोध करने वालों पर नहीं पड़ा।
असली सवाल ये है कि क्या साक्षरता बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करती है? आज अगर यू पी में ही एक सरकारी स्कूल से पढ़ा व्यक्ति जोड़ नहीं सकता, अंग्रेजी में पढ़, लिख नहीं सकता, तो ऎसी योग्यता किस काम की है?
न्यूनतम योग्यता का यह कानून दलितों, अल्पसंख्यकों और गरीबों के खिलाफ है।  हमने खबर लहरिया की कई खबरों में दलित उम्मीदवारों पर हमले के बारे में लिखा है।  अगर ऐसी न्यूनतम योग्यता चुनाव के साथ जोड़ दी जाए तो वे लोग लोकतंत्र की प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से बेहतर शिक्षा पाने की ज़िम्मेदारी और अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने और ज़्यादा संसाधन हासिल करने की ज़िम्मेदारी राज्य की जगह लोगों पर डाल दी है।  ऐसे में तो यही कह सकते हैं कि शुक्र है यू पी में नहीं, हरियाणा में यह कानून पास हुआ।