खबर लहरिया चित्रकूट क़र्ज़ और कर्ज़दार!

क़र्ज़ और कर्ज़दार!

आज के समय में बैंक व्यवस्था से काफ़ी लोग परिचित हैं, घर बनवाने के लिए, बच्चों की पढ़ाई के लिए, खेत में फसल लगाने के लिए, ऐसे कई कार्यों के लिए क़र्ज़ लिया जाता है। लेकिन आम जनता ऋण का पैसा सूत समेत वापस देती है। हमारे देश के किसान तो इस क़र्ज़ के भवर जाल में फंसकर अपनी जान भी दे देते हैं। लेकिन सारे नियम कानून गरीबों या साधारण जनता के लिए क्यों होते हैं? देश के अमीर व्यापार तो चोरी के साथ सीना जोरी भी करते हैं। हाल ही में दो घोटालों ने ये बात सौ टक्का सच साबित कर दी है।

साभार: फ्लिकर

पहला मामला है, गुजरात के हीरा कारोबारी नीरव मोदी का, जिसने 11, 346 करोड़ रुपये का हेरफेर पंजाब नैशनल बैंक की मुंबई स्थित एक शाखा में किया। नीरव मोदी ने आशय पत्र यानी एलओयू के आधार पर दूसरे विदेशी भारतीय बैंकों से पैसा उगाया। आशय पत्र पीएनबी बैंक ने जारी किया है, जिस कारण से नीरव के पैसा नहीं लौटाने की दशा में पैसा पीएनबी बैंक देगा। नीरव अब अपने परिवार के साथ देश से बाहर भाग चुके हैं। वहीं दूसरा मामला रोटोमैक पैंन बनाने वाली कंपनी ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड के मालिक विक्रम कोठारी का है, जिसने इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को चंपत लगाने का आरोप है। कोठारी ने 800 करोड़ रुपये का ऋण लिया है। इस केस की जांच सीबीआई कर रही है।
देश में ऐसे बैंक ऋण को देखें, तो 9,339 क़र्ज़दारों ने जानबूझकर 1,11,738 करोड़ रुपये नहीं चुकाए है और ये बैंक के गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) है। एनपीए वे क़र्ज़ होते हैं, जिनका बैंक में लौटना मुश्किल होता है। क्रेडिट इंफॉर्मेशन ब्यूरो ऑफ इंडिया लिमिटेड के डाटा के अनुसार इस क़र्ज़ में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 93, 357 करोड़ रुपये है, जो 2013 में 25,410 करोड़ रुपये थी। यानी पांच सालों में इसमें 340 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
ये तो थी अमीरों की बात पर क्या गरीब आदमी भी बैंक का पैसा लेकर चंपत हो सकता है? तो जवाब आसान होगा और वो है नहीं, हर साल देश में क़र्ज़ से डूबे किसानों की आत्महत्या की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
हम आपको अपने जिलों की कुछ ऐसी घटनाएं बताएंगे, जिसमें मौत की वजह क़र्ज़ थी।

साभार: पिक्साबे

जिला बांदा, ब्लॉक महुआ का आशाराम का पुरवा में 14 जुलाई 2016 में क़र्ज़ के कारण ही मोतीलाल प्रज्ञापति ने फांसी लगा ली। मोती लाल ने पैसा बैंक से ही नहीं लिया था, बल्कि साहूकार से भी क़र्ज़ लिया था। घर में बच्चों की शादी की चिंता और क़र्ज़ से दबे मोती लाल ने घर में फांसी लगा ली थी।
जिला बांदा, ब्लाक महुआ का गांव अनथुआ के 60 वर्षीय किसान रामऔतार कुशवाहा की मौत 20 मार्च 2015 की शाम हो गई। उनकी बेटी रजनी और पत्नी  सतवंती ने बताया कि दो साल पहले इलाहाबाद बैंक शाखा महोतरा से एक लाख बीस हज़ार का क्रेडिट कार्ड के तहत क़र्ज़ लिया था। पांच बीघे खुद की ज़मीन है और छह बीघे बलकट में लिया था। पिछले साल भी खेती में कुछ खास अनाज नहीं पैदा हुआ था। अब इस साल तो बिल्कुल उम्मीद खतम हो थी। खेत से शाम को आए तो फसल बर्बादी की बातें बार बार दोहरा रहे थे। अचानक दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।
बिसण्डा ब्लाक के गांव सिकलोढी के 40वर्षीय रामनरेश द्विवेदी ने 22 मार्च 2015 की शाम खुद को गाली मार ली और उनकी मौत हो गई। रामनरेश की औरत रेखा और चाचा अवधेश ने बताया कि इलाहाबाद यू.पी. ग्रामीण बैंक शाखा पुनाहुर से अट्ठासी हज़ार रुपए का क्रेडिट कार्ड के तहत कर्ज़ लिया था।
जसपुरा ब्लाक के नादादेव गांव के पैतिस वर्षीय सिद्धपाल ने 22 मार्च 2015 की सुबह आग लगाकर आत्महत्या की कोशिश की। वह अस्पताल में भर्ती है। भाई रामप्रसाद का कहना है कि उसने चालीस बीघे बलकट की खेती में अनाज बोया था। मौसम की मार से सब फसल बर्बाद हो गई। उसने 22 मार्च 2015 को मिट्टी का तेल डालकर आत्महत्या की कोशिश है। मैं बचाने गया तो मेरे हाथ भी जल गए हैं। दलजीत सिंह विधायक ने दस हज़ार रुपए दिए हैं। उसी से इलाज हो रहा है।
ब्लाक कमासिन, गांव भांटी के किसान नरेन्द्र सिंह ने 19 मार्च 2015 को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। नरेन्द्र सिंह के चाचा ने बताया कि 2010 में क्रेडिट कार्ड के तहत संतानबे हज़ार रुपए कर्ज़ लिए थे। लेकिन इस कर्ज़ को अदा नहीं कर पाए।
ये थी कहानी बड़े और छोटे क़र्ज़दरों की, अब बड़े रसूकेदारों से बैंक का क़र्ज़ वसूला जाएगा ये तो समय ही बताएगा, पर देश में और प्रदेश में क़र्ज़ माफी पर अपनी पीठ थपथपाने वाली सरकारें के लिए ये शर्मनाक है कि इन बड़े क़र्ज़दारों से वे क़र्ज़ की एक कोड़ी भी नहीं ले पाती है, तो वहीं कुछ किसानों को अपनी जान देने के बाद भी क़र्ज़ चुकाना पड़ता है।

– अल्का मनराल

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