खबर लहरिया ताजा खबरें सांस लेने का जोखिम

सांस लेने का जोखिम

फोटो साभार: फिल्कर

‘इस शहर को ये हुआ क्या, कहीं राख है तो कहीं धुंआ-धुंआ’ धूम्रपान की आदत से चेताने के लिए बने इस विज्ञापन की लिखी ये लाइन आज दिल्ली और उसे जुड़े क्षेत्र जैसे नोएडा, गाजियाबाद, मुरादाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद और भिवाड़ी पर सही बैठ़ती है। आज देश के ये भाग गैंस के चेंबर में बदल गए हैं। पर जिंदगी चल रही है, लोग मुंह में मास्क लगाकर तो कई बिना मास्क के अपने-अपने कामों में लगे हैं।
हालांकि इस हालात के लिए हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और दिल्ली के साथ केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस भेजा दिया गया है। पर इन सरकारों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के अलावा कुछ नहीं किया। इस स्मॉग यानि प्रदूषण की वजह पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना बताती जा रही है।  दिल्ली सरकार का आरोप है कि पंजाब और हरियाणा सरकार पर पराली जलाने से रोकने के सही उपाय नहीं करा पाई। पराली जलाने की समस्या पर ध्यान दें, तो इन राज्यों में फसल की कटाई के बाद फसल की ठूंठ रह जाती है और उसे जलाना पड़ता हैं, क्योंकि किसानों को धान की कटाई के बाद गेहूं की बुआई के लिए मुश्किल से 15 दिनों का समय मिलता है। इतने कम समय में खेतों में पड़ी टनों की संख्या की ये पराली को दूसरे जगह पर ठिकाने लगाने में 2,000 करोड़ रुपये की कीमत लगेगी, जो न तो इन किसानों की चुकाने की स्थिति है और न इन राज्यों सरकारों की। पर यहां ये भी मनना पड़ेगा कि राज्य सरकारों की कोशिशों के बाद पराली जलाने के मामलों में कमी आई है।
हमनें प्रदूषण के लिए किसानों को जिम्मेदार तो बता दिया। पर यही इस प्रदूषण की पूरी वजह नहीं हैं, क्योंकि दिल्ली में होने वाला निर्माण कार्य और वाहनों से निकालने वाला प्रदूषण भी बहुत हद तक इसके लिए जिम्मेदार है। लेकिन सभी की नजरें पराली की तरफ टिकी हैं। ये बातें किसी से छिपी नहीं है कि देश की राजधानी में हर साल त्यौहारी मौसम में बड़ी मात्रा में कारे और दोपहिया वाहन सड़क पर दौड़ने के लिए आ जाते हैं और बड़े निर्माण कार्य भी दिल्ली की सघन जनसंख्या के लिए हानिकार है। लेकिन जनता अपनी गलती को नजरअंदाज करके समाधान के लिए सरकार की तरफ देख रही है। अब समय सरकार की ओर देखने का नहीं हैं बल्कि खुद से इस प्रदूषण को कम करने का है, क्योंकि अभी नहीं जागे तो वो दिन दूर नहीं जब हम हर वक्त मुंह बांधे रहेंगे और हम अपने आने वाले भविष्य को खुलकर सांस भरने की हवा तक नहीं दे पायेगे। तो जागिए! और जो साफ-सुथारा मौहाल हमें हमारे बड़ों से मिला है, वो हम अपने छोटों को अमानत के तौर पर सुरक्षित दें।
बाइलाइन अल्का मनराल