खबर लहरिया बाँदा ‘डार्क जोन’ तिन्दवारी में जारी है पानी का दोहन, नलकूप और हैंडपम्प खराब, अभी भी जारी है निजी बोरिंग

‘डार्क जोन’ तिन्दवारी में जारी है पानी का दोहन, नलकूप और हैंडपम्प खराब, अभी भी जारी है निजी बोरिंग

kripashanker tivariजिला बांदा, ब्लाॅक तिन्दवारी। 19 मार्च को खप्टिहाकला गांव के प्रधानपति जाहर सिंह नाई के दुकान पर बैठे मिले। यह दुकान गांव के मुख्य सड़क के किनारे है। यहीं पर बस स्टाॅप और एक स्कूल भी है। बस स्टाॅप से दस कदम दूर एक हैंडपम्प है। देखने में तो यह हैंडपम्प है लेकिन इस समय यह सिर्फ कूड़ेदान का काम कर रहा है। जाहर सिंह कहते हैं कि ‘यह हैंडपम्प तीन-चार साल से खराब है।‘
कुल मिलाकर खप्टिहाकला में 26 ऐसे हैंडपम्प है जिन्हे रीबोर करवाना है। इन हैंडपम्प की लिस्ट ब्लाॅक में मार्च में दी गई थी।
पिछले महीने तिन्दवारी ब्लाॅक के सारे हैंडपम्प का जायजा लिया गया था, जिसमें खप्टिहाकला और जौहरपुर ग्राम पंचायत का नाम खराब हैंडपम्प की लिस्ट में सबसे उपर मिला। खप्टिहाकला में 26 और जौहरपुर में 17 हैंडपम्प रीबोर की सूची में हैं।
तिन्दवारी क्षेत्र को 2012 में राज्य सरकार ने ‘डार्क जोन‘ घोषित किया था। उत्तर प्रदेश में अब तक कुल 165 क्षेत्र को ‘डार्क जोन‘ घोषित किया जा चुका है। महोबा, हमीरपुर और बांदा जिले का तिन्दवारी इस लिस्ट में सबसे उपर है। ‘डार्क जोन’ उस क्षेत्र को कहते हैं जहां पर ज्यादा बोरिंग होने की वजह से भूजल स्तर बहुत नीचे गिर गया हो।
तिन्दवारी ब्लाॅक के बी.डी.ओ. ओमप्रकाश शुक्ला का कहना है कि ‘पानी का दोहन हो रहा है। भूजल स्तर 125 से 150 फीट नीचे चला गया है। इस समय तिन्दवारी में हैंडपम्प लगाने के लिए 20 फीट के दो पाइप 30-40 फीट की गहराई पर डालना पड़ रहा है।’
ज्यादा हैंडपम्प, कम पानी
handpump-wजरा तिन्दवारी क पर नजर डालिए। नियम के अनुसार 150 लोगों के बीच एक हैंडपम्प होना चाहिए और दो हैंडपम्प के बीच 75 मीटर की दूरी होनी चाहिए। लेकिन तिन्दवारी में दो लाख की आबादी के लिए 4040 हैंडपम्प है, यानि आवश्यकता से तीन गुना ज्यादा! हालात इतने बुरे है कि खप्टिहाकला की पुलिस चैकी के पास केवल दस मीटर की दूरी पर दो हैंडपम्प लगे हुए है। इतना ही नहीं, काफी सारे हैंडपम्प रीबोर की सूची में आ चुके हैं।
अब नलकूप की संख्या पर नजर डालिए। कुल मिलाकर इस ब्लाॅक में 155 सरकारी नलकूप हैं और 500 निजी नलकूप है।
इसके अलावा ब्लाॅक में 200 और निजी नलकूप है जिनका बोरिंग 2012 से पहले हो गया। किसानों को 2-3 लाख प्रति नलकूप का खर्च उठाना पड़ा। ‘डार्क जोन‘ होने के कारण सरकार ने यहां विद्युत कनेक्शन देने पर रोक लगायी थी, जिससे किसान कर्ज में डुब गये थे। साल भर की चर्चा के बाद सरकार ने 2015 में इन 200 निजी नलकूप को विद्युत कनेक्शन दिया।
लेकिन सरकार ने 2012 के बाद ‘डार्क जोन‘ में किसी भी प्रकार के नये बोरिंग को अवैध बना दिया है। हालांकितिन्दवारी क्षेत्र में अभी भी निजी बोरिंग लगातार जारी है।
कैसा क्षेत्र है ये ‘डार्क जोन’ जहां पर जरूरत से ज्यादा हैंडपम्प लगे हुए हैं लेकिन पानी नहीं है? खप्टिहाकला और जौहरपुर के सैकड़ो हैंडपम्प रीबोर की सूची में क्यो पड़े हुए हैं? अभी भी ‘डार्क जोन’ में नीजी बोरिंग कैसे चल रहा है?
हर जगह निजी बोरिंग
handpump-mechanicखप्टिहाकला के मिस्त्री संतसरन हर रोज 3-4 हैंडपम्प बनाते हैं। 80 किलो के औजार लेकर संतसरन 12 घंटे काम करते है। प्रधानपति ने संतसरन की मदद लेकर रीबोर की सूची तैयार की थी। मिस्त्री का कहना है कि रीबोर के मानक कई तरह से तय होते है-किसी का पाइप फटा होता है तो किसी से मिट्टी निकलता है और किसी का लाइन खराब हो जाता है क्योंकि अक्सर हैंडपम्प के नीचे सामान्य रूप से कई ज्यादा पाइप लगे होते हैं।
इस गांव में 249 हैंडपम्प है। संतसरन द्वारा बनाई गई सूची में 26 ऐसे हैंडपम्प है जो पिछले 3-4 साल से खराब पड़े हैं। गांव में पांच सरकारी ट्यूबवेल है जिनमें से केवल दो काम कर रहें हैं। जाहर सिंह बताते हैं कि निजी ट्यूबवेल तो पूछिए मत, अनगिनत है।
गांव के कृपाशंकर तिवारी का खेत खप्टिहाकला पुलिस चैकी के पास ही पड़ता है। अपने खेतों में टहलते हुए मिले तिवारी ने बताया कि उनके पास 40 बीघा खेती है जिसमें गेहूं, मटर और मसूर बोया है। उनके निजी ट्यूबवेल का घर और टंकी दोनों नया बना है। पानी के लिए लपेटा पाइप भी है।
ताज्जुब की बात ये है कि इनका निजी बोरिंग 2012 के बाद बनाया गया है जिसका बिजली का कनेक्शन 2015 में मिला। तिवारी कहते है कि ‘मुझे तो ये नहीं पता है कि यहां पर निजी बोरिंग पर सरकार ने रोक लगाई गई है। यहां पर बोरिंग लगातार 2014 से हो रही है।‘
आ रही है गर्मी
jahar-sinhgबी.डी.ओ. बताते हैं कि ‘डार्क जोन’ तिन्दवारी को सामान्य बनाने के लिए बहुत समय लगेगा। शायद इसका जलस्तर सामान्य ना हो पाए। लेकिन राज्य सरकार की तरफ से भूजल स्तर को बढ़ाने की कोशिश जारी है। शुक्ला ने बताया कि दो चीजें की जा रहीं है, एक तो मनरेगा के तहत तालाब बनवाए जा रहे हैं। एक हेक्टेयर से कम तालाब को मजदूरों के द्वारा बनवाया जाएगा और एक हेक्टेयर के उपर 40 तालाबों का चयन किया गया है, जिन्हे जेसीबी मशीन से खुदवाया जाएगा। इसपर एक साल से काम रूका हुआ है। सरकार ने पानी के सरंक्षण के लिए दूसरा काम यह किया है कि ब्लाॅक में सबसे ज्यादा चेक डैम बनवाएं गए हैं।
बी.डी.ओ. का कहना है कि अभी पानी की समस्या इतनी ज्यादा नहीं है जितनी 15 अप्रैल के बाद से होगी। जैसे ही जोरदार गर्मी शुरू होगी, हर ग्राम पंचायत में 10-15 गांव प्रभावित होने लगेंगे।