जहाँ एक तरफ पूरा देश किसी भी प्रकार के भेदभाव को पीछे छोड़ आगे बढ़ रहा है वहीँ दूसरी तरफ कई मंत्री और संत समाज, जाति भेदभाव से जुड़े प्रत्यारोपों पर अभी भी कमर कसे हुए हैं। भले ही आज की युवा अपनी सोच को कितना भी आगे बढ़ा ले, लेकिन वे जाति भेदभाव से जुड़ों इन पहलुओं को कभी आगे नहीं बढ़ा पाएँगे।
अभी हाल ही में जहाँ पहले हनुमान को दलित बोला गया अब वहीँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भले ही अप्रत्यक्ष रूप से ही, रामायण लेखक वाल्मीकि को भी दलित बुलाया है। शनिवार को अयोध्या में एक सभा के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने महर्षि वाल्मीकि को दलित बुलाकर, संत समाज द्वारा आलोचना प्राप्त की है।
“महर्षि वाल्मीकि एक ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने हमे भगवान राम के बारे में बताकर हमे उनकी भूमिका से परिचित कराया। फिर भी हम वाल्मीकि समुदाय के लोगों को अछूत मानते हैं। अगर हमने इसे नहीं रोका तो हम उनका आशीर्वाद और प्यार कभी नहीं मिलेगा, ऐसा योगी द्वारा उस सभा में कहा गया है।
कई संतों और पुजारियों ने आदित्यनाथ की इस टिप्पणी पर विरोध जताया है, जिसमें राम मंदिर के मुख्य पुजारी और राम जनमभूमी ट्रस्ट के अध्यक्ष ने इस कथन पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे भगवान राम और संत समाज का अपमान बताया है। उन्होंने कहा कि महर्षि वाल्मीकि रामायण के लेखक थे और उनका दलित (अनुसूचित जाति) समुदाय के साथ कोई संबंध नहीं था।
“राजनीतिक रूप से प्रासंगिक रहने के लिए, लोगों ने अपने गोत्रा को दिखाना शुरू कर दिया है। जो लोग कहते थे कि हम गलती से हिंदू जाति के हैं, आज वे अपने आप को गलत बताते हुए सनातन धर्म के अनुयायी बता रहे हैं। उन्होंने अपने गोत्र को जानना-पहचानना शुरू कर दिया है। मैं सनातन धर्म के आगे हार गया हूँ”, ऐसा आदित्यनाथ का कहना है।
आदित्यनाथ को पहले हिंदू भगवान हनुमान को दलित कहने पर विरोध सहना पड़ा था। अलवर की मालपुरा विधानसभा सीट में भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार करते समय उन्होंने ये टिप्पणी की थी। आदित्यनाथ ने कहा था कि हनुमान जंगल में रहते थे और एक दलित भी थे, इसलिए उन्हें समाज से बाहर समझा जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि “उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम” तक का पूरा भारतीय समुदाय एकजुट है, “इसके लिए मैं भगवान हनुमान को धन्यवाद करता हूँ”।