उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 1 सितंबर को प्रदेश में सरकारी नौकरी की कमी का कारण युवाओं में योग्यता की कमी बताया। उन्होंने कहा कि वे युवाओं को रोजगार देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन योग्य उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं, जो आगे आकर परीक्षा पास करें औैर नौकरी करें।
मुख्यमंत्री ने इस विषय पर कहा कि जब हमने 68 हजार नौकरी निकाली तो 1 लाख आवेदन भी नहीं मिले। जब परीक्षा हुई तो केवल 40 हजार ही पास कर पाये। मुख्यमंत्री ने ये बात युवाओं में योग्यता की कमी का उदाहरण देते हुए कही। लेकिन सच्चाई इससे उलट है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार बेरोजगारी के आंकड़ों के आधार पर उत्तर प्रदेश 11वें स्थान पर हैं। वहीं सितंबर 2015 में चापरासी पद की 368 रिक्तियों के लिए 23 लाख आवेदन हुए, जिसमें छठी से दसवीं तक शैक्षिक योग्यता के आवेदनकर्ता 13 लाख, 12वीं शैक्षिक योग्यता के 7.5 आवेदनकर्ता थे। स्नातक और स्नातकोत्तर की शैक्षिक योग्यता के आवेदनकर्ता 1.52 लाख थे। पांचवी तक की योग्यता की अनिवार्यता वाले इस पद के लिए पीएचडी के 255 आवेदन थे।
आदित्यनाथ के इस बयान के बाद प्रदेश के युवा हैरान हैं कि ये योग्यता की कमी है या संसाधनों की? ललितपुर जिले की रानी कहती हैं कि जब सत्ता हासिल करनी थी, तो रोजगार देने की बात कही थी। लेकिन अब कुछ और ही बात कह रहे हैं। वह हंसकर कहती हैं कि अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।
2015 में एमएड कर चुकी चित्रकूट की शबाना कहती हैं कि मैंने 2012 में बीएड 70 प्रतिशत अंकों से पास की। उसके बाद टीटी किया और सीटेट की परीक्षा दो बार पास की। लेकिन प्रदेश की सारी नौकरी के आवेदन फंस ही जाते हैं। शबाना की बात अभी हद तक सही ही है, क्योंकि कई पदों में आवेदन मांगने के बाद उसपर आगे की कार्यवाही नहीं होती है। चित्रकूट की ही मोनिका भी यही बात को कहती हैं कि कई पदों की रिक्तियों को हाईकोर्ट के आदेश के कारण रोका गया हैं। बांदा के निवासी महमूद खां भी सरकारी नौकरी नहीं मिलने के सवाल पर कहते हैं कि कई आवेदन दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। ललितपुर की वर्षा भी इस बयान पर कहती हैं कि हमारे गाँव में लड़कियां पढ़ाई तो पूरी कर चुकी हैं लेकिन नौकरी के नाम पर सब घर में बैठी हैं।
मुख्यमंत्री इस बयान पर प्रदेश का युवा हैरान हैं कि योगी आदित्यनाथ अपनी कमी छिपाने के लिए हमें बनाम क्यों कर रहे हैं, जबकि सबको पता है कि सच्चाई क्या है।