खबर लहरिया National सरकार मस्त, महिला पहलवान त्रस्त….राजनीति, रस,राय

सरकार मस्त, महिला पहलवान त्रस्त….राजनीति, रस,राय

28 मई 2023 क्या इसके लिए भी याद किया जाएगा कि महिला पहलवानों के साथ किस तरह से पुलिस ने बर्बरता की? जब यह इतिहास लिखा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नए संसद भवन का उद्घाटन किया तो महिला पहलवानों के साथ कि गई हैवानियत क्यों नहीं?

बता दें कि पहलवानों और बीजेपी सांसद व भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के बीच जनवरी 2023 से विवाद चल रहा है। तब खेल मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद धरना खत्म हो गया था और मामले में जांच कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी की रिपोर्ट से पहले ही 23 अप्रैल से एक बार फिर पहलवान खुलकर बृजभूषण शरण सिंह के विरोध में आ गए और यौन शोषण का आरोप लगाया। दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहलवान एक माह से ज्यादा वक्त से धरना दे रहे हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, उसके बाद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश दिए गए। पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार करने की मांग की है। बृजभूषण पर एक नाबालिग समेत सात महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है।

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एक बात यह बताइए कि सब अंधभक्ति में इतना चूर हो गए कि गलत को गलत कहने की हिम्मत तक बेच डाली? अब गलत, गलत क्यों नहीं दिखता है? सारे गलत काम सत्ताधारी पार्टी और मोदी सरकार के लिए माफ क्यों? गलत को गलत की हिम्मत खो देने वाले लोग उन लोगों का भी विरोध करते हैं जो गलत के खिलाफ हैं।

हम जानते हैं कि समय के साथ बदलाव होना ज़रूरी होता है। चाहें संसद भवन हो या फिर सरकारें। बात जब राजनीति और गलत राजनीति की आ जाती है तब सवाल उठाना बहुत ज़रूरी हो जाता है। संसद भवन के उद्घाटन को लेकर जाति और महिला होने के नाते जिस तरह की राजनीति की गई मोदी सरकार की तरफ से वह मोदी सरकार के लिए इसलिए भी सवाल खड़ा करती है कि जहां महिलाओं के सम्मान में भाजपा मैदान में कहती है वही अपमान भी करती है। एक तरफ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को न शामिल करना और वहीं महिला पहलवानों के साथ इस तरह की बर्बरता करना और फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुप्पी साध लेना। या फिर इस तरह की खबरों से जानबूझकर बेखबर रहना।

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रही संसद भवन के निर्माण की बात तो जहाँ एक ओर एक फ़्लाईओवर बनने में पाँच साल से ज़्यादा लग जाते हैं, जहाँ देश के कई गाँव आज भी बिजली और पानी को तरस रहे हैं, कई गली मोहल्लों पर केवल एक गड्ढा साफ़ करने के लिए जाने के लिए आवेदन पर आवेदन होने के बाद गढ्ढा जस का तस है, जहां कई सरकारी स्कूल और अस्पताल अपनी टपकती छत और शटर के दरवाजे ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं, वहां इतना बड़ा संसद भवन, इतनी सुविधा और इतनी आधुनिकता के साथ केवल दो साल में बन गया। अपनी वाहवाही के लिए सरकार को किसी भी स्तर तक गुजरना पड़े वह मर मिटने को तैयार है।

हर राजनीतिक दल, हर सरकार, हर राजनेता, हर उम्मीदवार, हर मंत्री, हर अधिकारी अगर इससे सबब ले जाएं और अपने-अपने क्षेत्र की हर परियोजना को इसी संकल्प शक्ति, इसी गति से पूरा करें तो सोचिए ये देश अगले कुछ ही सालों में कहां होगा? अगर ऐसा हो पाया तो हमारे लोकतंत्र की काया कल्प हो जाएगी।

 

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