खबर लहरिया Blog पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार के बीच तकरार, हिंसा में शामिल लोगों को मिली क्लीन चिट, जानिए पूरा मामला

पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार के बीच तकरार, हिंसा में शामिल लोगों को मिली क्लीन चिट, जानिए पूरा मामला

Wrangle between West Bengal and Central Government

पश्चिम बंगाल में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। इसी बीच केंद्र सरकार और मौजूदा सरकार के बीच काफ़ी तकरार भी देखने को मिल रही है। बताया जा रहा है कि केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंद्योपाध्याय के बीच आज शुक्रवार शाम को वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिए बातचीत होगी। 

वर्चुअल बातचीत करने की नौबत तब आई, जब पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति पर बातचीत करने के लिए पुलिस प्रमुख और मुख्य सचिव को भेजने से इंकार कर दिया गया। बीजेपी के पश्चिम बंगाल जाने पर हिंसा का मामला भी सामने आया था, जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।

पश्चिम बंगाल में गृह मंत्री और नड्डा के काफ़िले पर हुआ हमला

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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ममता बनर्जी की सरकार को उन तीन आईपीएस ऑफिसर को वापस दिल्ली भेजने को कहा, जो जेपी नड्डा की सुरक्षा में थे। लेकिन ममता बनर्जी की सरकार द्वारा तीनों आईपीएस ऑफिसर को भेजने से इंकार कर दिया गया और यह कहा गया कि उन्हें कोई और कार्यभार संभालने के लिए नियुक्त कर दिया गया है।

इस दिन हुआ था हमला

10 दिसंबर की सुबह को जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह के काफिले पर हमला हुआ। जब वह पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक में शामिल होने के लिए डायमंड हार्बर जा रहे थे। इस दौरान भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित कई नेता घायल हो गए। डायमंड हार्बर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी करते हैं।

घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने बताया कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने दक्षिण 24 परगना जिले में सिराकुल के पास सड़क को बन्द कर दिया था। उनमें से कुछ के हाथों में लाठीडंडे, लोहे की छड़ें और पत्थर थे। पुलिस ने जब उन्हें हटाने की कोशिश की तो वे भाजपा और मीडिया के खिलाफ नारे लगाते हुए पुलिस से झगड़ने लगे। 

हमले को लेकर अमित शाह ने किया ट्वीट

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट करते हुए कहा, ‘‘बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा जी के ऊपर हुआ हमला बहुत ही निंदनीय है, उसकी जितनी भी निंदा की जाए वो कम है। केंद्र सरकार इस हमले को पूरी गंभीरता से ले रही है। बंगाल सरकार को इस प्रायोजित हिंसा के लिए प्रदेश की शांतिप्रिय जनता को जवाब देना होगा।” 

तृणमूल शासन में बंगाल अत्याचार, अराजकता और अंधकार के युग में जा चुका है। 

टीएमसी के राज में पश्चिम बंगाल के अंदर जिस तरह से राजनीतिक हिंसा को संस्थागत कर चरम सीमा पर पहुँचाया गया है, वो लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले सभी लोगों के लिए दु:खद भी है और चिंताजनक भी।

सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्यवाही रोकी

आज सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी इलाके में पुलिस के अनुसार बीजेपी द्वारा भड़काई गयी हिंसा पर अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह बीजेपी नेताओं अर्जुन सिंह, कैलाश विजयवर्गीय, पवन सिंह, मुकुल राय और सौरव सिंह पर, बंगाल पुलिस द्वारा की गयी रिपोर्ट को निलंबित करती है और उन पर आगे की कार्यवाही पर भी रोक लगाती है। 

मामले की अध्यक्षता करने वाले एसके कौल की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भाजपा नेताओं द्वारा की गयी याचीकाओं को ज़ारी किया है। अदालत का कहना है कि

बीजेपी नेताओं पर झूठा आरोप लगाया गया है। यह सब बीजेपी को अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले उन्हें राज्य में प्रवेश करने से रोकने के लिए किया गया है। 

अदालत ने मामले को की  मोड़ने की कोशिश

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हिंदुस्तान टाइम्स की दिसंबर 18, 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि भाजपा नेता अर्जुन सिंह पर 2019 में 64 अपराधिक मामले हैं। जिसका संबंध सार्वजनिक व्यवस्था को तोड़ने से था। अर्जुन सिंह का नाम सिलीगुड़ी हिंसा में भी आया है। 

भाजपा प्रवक्तता कबीर बोस के मामले में भी शीर्ष अदालत ने कुछ ऐसा ही फैसला किया था, जो हमने आज के फैसले में देखा। कबीर बोस को हत्या के मामले में गिरफ़्तार किया गया था। जहां अदालत द्वारा यह कहा गया किसुनवाई की अगली तारीख तक मामले को लेकर कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा सिलीगुड़ी हिंसा मामले में कैलाश विजयवर्गीय और चार अन्य नेताओं की तरफ से महेश जेठमलानी केस लग रहे थे। कबीर बोस के मामले में भी इसी वकील ने केस लड़ा और दोनों ही मामलों में जांच की कार्यवाही पर अदालत द्वारा रोक लगा दी गयी। 

उत्तरकन्या अभियानके दौरान भड़की हिंसा

सोमवार 14 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में बीजेपी रैली करने पहुंची थी। जहां बीजेपी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों द्वारा ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ उत्तरकन्या तक मार्च किया गया था। जिस दौरान बीजेपी कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़प भी हुई थी। जिसे रोकने के लिए पुलिस द्वारा वाटर कैनन और आंसू गैस के गोलों का भी इस्तेमाल किया गया था।

जिसके बाद पुलिस द्वारा भाजपा नेताओं परउत्तरकन्या अभियानके दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में मामला दर्ज़ किया गया था। पुलिस का आरोप था कि बीजेपी नेताओं ने कानून व्यवस्था को तोड़ने के साथसाथ पुलिस के साथ झड़प की है और सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया है।

इन नेताओं के खिलाफ़ किया गया मुकदमा

सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस के न्यू जलपाईगुड़ी पुलिस स्टेशन में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, सांसद एवं भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या, बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ किया गया। इसके अलावा सौमित्र खान,सायंतन बोस, सुकांता मजूमदार, निशीथ प्रामाणिक, राजू बिस्टा, जॉन बरला, खोगन मुर्मू, सांकू देब पांडा और प्रवीण अग्रवाल को भी हिंसा के लिए आरोपित पाया गया। 

चुनाव से पहले किसी भी राज्य में हिंसा होना एक आम बात हो गयी है। लेकिन हिंसा की जांच को भी रोक देना, कितना सही है? आज सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला, कुछ अटपटा सा लगता है। मामले की जांच ना होने पर, ना तो हिंसा के आरोपी का पता चलेगा और ना ही हिंसा के पीछे की असली वजह। यहां आखिर किस सच को बाहर आने से बचाया जा रहा है? ममता बनर्जी की सरकार और केंद्र सरकार के बीच का विवाद क्या रंग लाएगा? वह भी आज की बातचीत के बाद साफ़ हो जाएगा।