विश्व निमोनिया दिवस आज पुरे विश्व में मनाया जा रहा है। विश्व निमोनिया दिवस विश्वभर में हर साल 12 नवंबर को मनाया जाता है। ताकि बीमारी की जागरूकता लोगों तक पहुचाई जाए। सबसे पहले इस दिन को मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा 12 नवंबर 2009 को हुई थी। जिसका उद्देश्य विश्वभर में लोगों के बीच निमोनिया के प्रति जागरूकता फैलाना था।
अगर मैं बुंदेलखंड की बात करूं तो यह बीमारी की जागरूकता आज के विश्व निमोनिया दिवस तक सीमित हैं। बाकी जानकारियां स्वास्थ विभाग के रिकार्ड में बंद है। लोग इस बीमारी को बहुत ही साधारण और खास कर बच्चों की बीमारी तक ही जानते हैं। अगर बच्चों को यह बीमारी हो जाये तो पहले घर का ही इलाज करते हैं, गंभीर होने पर ही डॉक्टर को दिखाते हैं। बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर प्रदेश और बिहार में गंभीर निमोनिया वाले आधे से अधिक बच्चों को अस्पताल में एडमिट नहीं किया जाता है। बड़ी बात तो ये है कि लोगों को इस बात की जानकारी भी कम है कि यह बीमारी सिर्फ बच्चों को ही नहीं किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। यह बात अलग है कि इस बीमारी से बच्चे और बूढ़े लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं। शासन-प्रशासन स्तर से भी इस बीमारी को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है। जबकि 2017 में उत्तर प्रदेश में 78470 लोगों की निमोनिया के कारण मौत हुई है और यह भारत में (राजस्थान के बाद) सबसे अधिक निमोनिया से मौत की संख्या है।
निमोनिया दुनिया भर मौत का एक प्रमुख कारण है, जो 2017 में अनुमानित 2.6 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है। जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीन एक्सेस सेंटर (आईवीएसी) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2016 में 158,176 बच्चों की मौत निमोनिया से हुई है।
अगर ये आंकड़े इतने भयावह हैं तो विश्व निमोनिया डे मनाने का मुख्य कारण चहारदीवारी के अंदर डॉक्टरों और नेताओं की भीड़ इकट्ठा करके भाषणबाजी करने और मिठाई खाने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। शासन-प्रशासन गांव गांव में निकल कर जागरूकता के लिए मेहनत करे ताकि लोग जान सके कि निमोनिया की बीमारी किसी भी उम्र के मनुष्य को हो सकती है जिसका डॉक्टर से इलाज करना उतना ही जरूरी है जितना कि जीने और स्वस्थ्य रहने के लिये हवा पानी और भोजन जरूरी है।